कवितालयबद्ध कविता
सुन लो मेरी मन की बातों को
सुन लो मेरी मन की बातों को,
जो मैं तुम्हें सुनाना चाहती हूँ ।
पढ़ लो मेरी आँखों की भाषा को,
जो तुमसे कुछ कहना चाहती हैं।
समझ लो तुम मेरे मौन की भाषा ,
जो तुमको कुछ बताना चाहती है।
समझ लो तुम मेरे जज्बातों को ,
जो तेरे दिल में बसना चाहते हैं।
छू लो तुम मेरे अंतर्मन को आज,
जो तुझमें ही बहना चाहते हैं।
महसूस करो मेरी धड़कनों को,
जो तुझसे कुछ कहना चाहती हैं।
मेरे साथ चलो तुम कुछ कदम,
कुछ पलों को साथ जीना चाहती हूँ।
तेरे साथ मिलकर मैं एक नयी कहानी,
जिंदगी की फिर लिखना चाहती हूँ।
ये रचनाएँ स्वरचित, मौलिक व अप्रकाशित है।
राजेश्वरी जोशी
उत्तराखंड
मौन की भाषा कौन पढ़े ? आशा रहनी ही चाहिए,कोई तो ऐसा होगा जो आंखों की भाषा पढ़ सके। बहुत सुंदर सृजन।