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अभिभूत - Madhu Andhiwal (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

अभिभूत

  • 203
  • 3 Min Read

अभिभूत -----
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मै अभिभूत थी तेरे प्यार में,
सोचती थी इसे कहां संजोऊ
रखूं दिल की किस तिजोरी में,
कैसे बचाऊं सबकी नज़रों से,
दिन पर दिन निखर ,
रही थी तेरे प्यार में ,
सोचती थी कैसे करू इजहार,
डरती थी दुनिया की निगाहों से,
चाहती थी छुपा लो ,
एक नन्ही चिड़ियाँ की तरह
मुझे बांध लो उन मजबूत हाथों में ,
अफसोस तुम तो यू ही चले गये ,
जैसे भोर के आगमन ,
पर चांद चला जाता है,
छोड़ जाता है याद भरा सपना ,
जो याद आता सांसो की लय पर......
स्व रचित
डा. मधु आंधीवाल

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