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घर - Sudhir Kumar (Sahitya Arpan)

कवितालयबद्ध कविता

घर

  • 172
  • 10 Min Read

रंग-रोगन, लोहा-लक्कड़
सीमेंट या फिर ईंट-पत्थर
ये सब तो बनाते हैं
सिर्फ एक मकान
और एक घर ?

कैसे बनता है,
एक घर ?
क्या होता है,
सच्चे अर्थों में,
एक संपूर्ण घर?

एक हाई-फाई लोकेशन?
एक कीमती इंटीरियर डेकोरेशन?
इसकी लंबाई, चौडा़ई या ऊँचाई ?
नहीं,नहीं, मन में सिमटे कुछ
जज़्बातों की गहराई,
इनसे महकी, एक
खूबसूरत सच्चाई
घर तो है, एक छत के नीचे
पलती प्यार की कहानी
मन के दरिया में मचलती
होंठों पर आकर उमड़ती
चंद मौजों की रवानी
हर लमहे में खुद को
तलाशती जिंदगानी
इसमें सिमटे परिवार से,
हाँ, इसके कण-कण में बिखरी,
प्यार के साये में निखरी
छोटी-छोटी खुशियों के अंबार से
बडा़ होता है घर

बच्चे की किलकारी में
चहकता संगीत बनकर
उसकी तुतली बातों में
एक मीठा गीत बनकर
कभी बहन, कभी बेटी,
और कभी मनमीत बनकर
मन की चौखट पर
प्यार की एक दस्तक बन
पडा़ होता है घर

पल-पल बदलते मायनों में
ढलते मन के आईनों में
जीवन का प्रतिबिंब बन
जडा़ होता है घर

हौले-हौले मन की परतों से
निकल-निकलकर
अहसास की हर पंखुड़ी पर
फिसल-फिसलकर
ढलकती ओस की हर बूँद से
सिहर-सिहरकर,
पलछिन-पलछिन
निखर-निखरकर
आँगन के कोने-कोने मे,
कण-कण में फिर
बिखर-बिखरकर
हर पल नया
रंग बन-बनकर
चढा़ होता है घर

एक दिल से उमड़कर
और दूजे दिल में उतरकर
जज़्बातों के मोतियों को चुन-चुनकर
बिना कहे, आँखों-आँखों में
एक दूजे को पढ़-सुनकर
जब खामोशी कुछ बोलती है
पलकें जब मन के भेदों को
खोलती हैं
उन पर दो मोती बनकर
बिखरा पडा़ होता है घर

कभी एक लोरी
और कभी थपकी बनकर
सावन की घटा से
नर्म धूप बन,
कुछ छन-छनकर
नर्म उँगलियों से
मन को टटोलती सी
प्राणों में अमृत घोलती सी
हर एक खालीपन को पल-पल
एक अपनेपन से भरती
माँ सी लगने लगती है जब
कण-कण आँगन की धरती
और पिता के अभयहस्त सा
लगने लगता है जब अंबर
तब इन दोनों के बीच
कहीं पर सिमटकर
हर लमहे से लिपटकर
मानो हवा में तैरता सा
अद्भुत आनंद बिखेरता सा
मन के तारों को छेड़ता सा
रिश्तों की हर शाख से
फूल बनकर झडा़ होता है घर

कुछ आँसू, कुछ मुस्कान लिये
जज़्बातों के दोने में
सिमटा एक जहान लिये
अहसास के एक
आईने से झलका सा
कभी-कभी भीगी पलकों से
मोती बनकर ढलका सा
ढूँढता हर लमहे में
एक-दूजे के वास्ते
मर-मिटने का एक अवसर
हाँ, रिश्तों की
इस गहरी बुनियाद पर
खडा़ होता है घर

द्वारा :सुधीर अधीर

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Madhu Andhiwal

Madhu Andhiwal 3 years ago

अब घर नहीं मकान हैं ,बहुत सुन्दर

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