कविताअतुकांत कविता
विधा_ छंद मुक्त कविता
विषय_ आंखो का तारा
हां वो है मेरी आंखो का तारा
मेरा प्यारा दुलारा मेरा अंश
जिसने।दिया।मुझे
खुशियों का।अनमोल तोहफ़ा।
जिसने दिया मुझे जीने का हौसला।
ना जाने कितनी मन्नतों के बाद
वो आया था मेरे गोद में
मेरी आंचल का फूल बन कर।
जिसने महका दिया था
मेरे सुने आंगन को।
वो सुखद अनुभूति
जब पहली बार उसे सीने से लगा
अमृतपान कराया ।
सच,....
उस एहसास को कोई भी
कलम उकेर न पाया।।
वो जो था मेरेआँखो का तारा।
ना जाने कब बड़ा हुआ और रोजी रोटी के जुगाड़ में हो गया मुझसे दूर
गया दूसरे शहर दूसरे राज्य में।
इंतज़ार रहता है उसके घर आने का।
फ़िर से उसे आंचल तले छुपाने का।
प्यार।से उसे सीने में छुपाने का।
पर वक्त के बहते जलधार में
कुछ अरमान को चुपचाप बहा देना
पड़ता है।
क्यूंकि वो को था जीगर का टुकड़ा
प्यारा नन्हा दुलारा वो आज किसी और का भी है हसफर हमराही।
पर आज भी मां पिता का दुलारा।
#आंख का तारा।
** मणि बेन द्विवेदी
वाराणसी उत्तर प्रदेश