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बचपन दो - Sarla Mehta (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

बचपन दो

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बचपन दो

मीठी मीठी स्वर्णिम यादें
जीवन भर साथ रहती हैं
सहलाती सी संवेदना दो
बचपन तो बच्चों को देदो

गुल्ली डंडे व सितोलिया
खो खो कबड्डी छुपाछाई
नटखट यारों का साथ दो
प्यारे से लम्हों की यादें दो

खेले कूदे खूब दौड़े भागे
संस्कारी सीखें मिल जाए
कलम के बदले लट्टू दो
सुइयाँ घड़ी की ठहरा दो

दादी नानी का साथ मिले
कान्हा की लीलाएँ सीखे
ये ट्विंकल को बुझने दो
नियमों से थोड़ी मुक्ति दो

सहज सी मूल्यों की बातें
खेल खेल में जान जाते
संगीत गीत व चित्रकारी
रुचियों को भी उभरने दो
सरला मेहता

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Sudhir Kumar

Sudhir Kumar 4 years ago

अद्भुत

Sudhir Kumar

Sudhir Kumar 4 years ago

अद्भुत

शिवम राव मणि

शिवम राव मणि 4 years ago

आज के दौर यह कविता बिल्कुल कारगर है मेम

वो चांद आज आना
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तन्हाई
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प्रपोजल
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माँ
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