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जय माँ गंगे - Sarla Mehta (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

जय माँ गंगे

  • 180
  • 4 Min Read

जय माँ गंगे

गंगोत्री से उद्गमित होती
अद्भुत झरने बनाती हूँ
मैं हिमकन्या सुरसुता हूँ
पतितपावनी जान्हवी हूँ
प्रकृति की गोद से उतर
शिवजटा में समा जाती
हर की पेड़ी धर्मधाम में
आस्था दीप जलाती हूँ
विश्वनाथ शिव बाबा के
चरण पखारूँ काशी में
सरस्वती यमुना से मिल
संगम प्रयाग बनाती है
भीष्म पुत्र तेरा पराक्रमी
वचन की शान बढ़ती है
शपथ अंजुरी से माँ तेरी
सत्यनिष्ठा वचन निभाती
वेद पुराण उपनिषद भी
माँ तेरा गुणगान गाते हैं
अमृत बूंदें पवित्र जल है
मोक्षद्वार राह दिखाती है
खलिहान खेत पोषित हैं
हरीतिमा धरा को देती है
कल कारखानी धंधे सारे
आँचल को मैला कर देते
निर्मल निर्बाध माँ गंगे को
अभिशप्त क्यूँ बना देते हैं
देश की अमोल धरोवर ये
संस्कृति की महालेखा है
चूनर दागों को मिटाना है
फ़िर से भागीरथ बनना है
सरला मेहता

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Sudhir Kumar

Sudhir Kumar 3 years ago

चैतन्यपूर्ण

शिवम राव मणि

शिवम राव मणि 3 years ago

बहुत खूबसूरत मेम हर हर गंगे

वो चांद आज आना
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तन्हाई
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प्रपोजल
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माँ
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तन्हा हैं 'बशर' हम अकेले
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