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परवरिश की कीमत - Sarla Mehta (Sahitya Arpan)

कहानीलघुकथा

परवरिश की कीमत

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परवरिश की कीमत

निसंतान देव शर्मा व देविका के लिए उनका छोटा सा घर भी महल है।हाथ में लेने को विधवा रामी ही एक सहारा है। नन्हे बेटे राधू को बेसहारा करके वह भी प्रभु की प्यारी हो जाती है।
शर्मा दम्पति राधू को पुत्रवत पालते हैं। पढ़ लिख कर वह रोहन सा बन जाता है। मनपसन्द रीमा से ब्याह रचा बंगले में रहने लगता है। फैशन परस्त रीमा को सास ससुर फूटी आँख नहीं सुहाते।
बेचारे देव व देविका जहाँ के तहाँ। बीबी की बातों में आकर रोहन पिता से जमीन बेचने को कहता है। उसे विदेश जाने के लिए पैसे चाहिए । तभी उसे अपनी सच्चाई एक गाँव वाले से पता चलती है। वह ग्लानि से स्वयं को कोसता है। वह रीमा से कहता है," जिन्होंने इस अनाथ को बेटा बनाया,उनको मैं नहीं छोड़ सकता। तुम्हें इनके साथ ही रहना होगा वरना,,,तुम्हें जो करना है करो। परवरिश की कीमत चुकाना मेरा फ़र्ज़ है। "
सरला मेहता

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Sudhir Kumar

Sudhir Kumar 3 years ago

चैतन्यपूर्ण

Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

सुन्दर रचना

दादी की परी
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