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अनुपमा - Sarla Mehta (Sahitya Arpan)

कहानीलघुकथा

अनुपमा

  • 199
  • 5 Min Read

अनुपमा
लघुकथा
" हे भगवान,तीसरी बेटी! सोने की सीढ़ी तो अगले जनम में,,,,।" ठंडी साँसे भरते हुए दादी ने नाम ही तमा दे दिया। पर माँ अपनी दुलारी पमा को लाड़ के साथ संस्कारों से सजाती रही।
पड़ोसी शेखर जी को सुघड़ बारहवीं पास तमा अफ़सर बेटे अनुपम के लिए पसन्द आ गई। तमा आदर्श बहु व माँ बन गई। किन्तु अनुपम के दिल की रानी नहीं बन सकी।
अनुपम पैर में फ्रेक्चर की वज़ह से बिस्तर पर है। तमा को डॉ से फर्राटेदार अंग्रेजी में बात करते देख अचंभित है। पास खड़े पापा को मुस्कुराते देख अनुपम समझ जाता है।पापा बताते हैं," बेटा मैंने बहु को परीक्षाएं दिला कर एम् ए पास करवा दिया।साथ में अंग्रेजी में भी पारंगत कर दिया है।अपने दोनों बच्चों के रिज़ल्ट देखते नहीं हो ?"
तभी तमा चाय नाश्ता ले आती है और दवाई का पैकेट खोलने लगती है।
अनुपम पत्नी का हाथ थामे सजल आँखों से निहारते कहते हैं, " तुम,, तमा नहीं हो। आज से मेरी अनुपमा हो।"
सरला मेहता

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Ankita Bhargava

Ankita Bhargava 3 years ago

बहुत अच्छी रचना है मैम

Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

sakaratmak Sandesh Detee Sunder Rachna..!!

दादी की परी
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