कवितानज़्म
बीते वक्त का एक घाव ज़हन में रह गया है,
और वो अपना होकर भी अपना नहीं था-2
टुकड़ों में कहीं मेरे अंदर रह गया है।
वो भरोसा कुबूल-ए-इश्क पर उसके जो किया था मैंने-2,
जब टूटा वो भ्रम तो आँसुओं में दर्द सारा बह गया है,
जो था दिल में उसे मिटा दिया है मैंने-2
शायद वापस आते आते मेरा कुछ हिस्सा उसमें रह गया है।
और जब तक जाना सब धोखा था आँखो का-2,
सपने में जो था पूरा वो अब अधूरा रह गया है।
वो अब अधूरा रह गया है।
©भावना सागर बत्रा
फरीदाबाद,हरियाणा