कविताअतुकांत कविता
वो कौन है
असीम व्यथा और अगाध पीड़ा
उच्छवास भर भर निर्मम कालचक्र
निरंतर पुकारता मेरा नाम, और मैं
आवागमन के उग्र अभियोग से तापित
छलनी आत्मा के संग अनंत यात्राओं में
हे सारिपुत्र, लेकिन अब
कोई राजकुलीन वैरागी मुझसे
अनुपम धर्मचक्र अनुचालित करवाता है
नर्मदा जैसे सतत, पाषाणों पर प्रहार करके
नर्मदेश्वर बनाती है, वैसे ही वो
विपसन्ना की प्रचंड धौंकनी से
अचेतना पर आघात करके
मुझे साक्षिणी बनाता है
देखो सारिपुत्र, मेरी इस क्रीड़ास्थली को
काली रात के इस नीरव क्षण में
संसार से अर्जित मिथ्या ज्ञान
चमगादड़ बन कर उड़ रहा है
और लटक रहा है उल्टा
बोधिवृक्ष की दृढ़ शाखाओं पर
मेरे तालाब की मछलियां भी
चंचलता छोड़ हो गईं हैं ‘स्थिरप्रज्ञ’
जल के तल पर है अब केवल
असंख्य दीप्त किरणों का नृत्य
देखा हुआ आंख से ओझल हो रहा है
जाना हुआ स्मृति से विस्मृत हो रहा है
परिचय हो रहा है उस अव्यक्त के साथ
जो देखे जाने के उपार्जित ज्ञान से
असंभावित था
बंधु सारिपुत्र, वो कौन है?
अनुजीत इकबाल
लखनऊ