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मेरा चाँद - नेहा शर्मा (Sahitya Arpan)

कहानीलघुकथा

मेरा चाँद

  • 210
  • 6 Min Read

मेरा चाँद (लघुकथा)

भूख अपना पुरजोर अपना रही थी। चाँद के इंतज़ार में बेचैनी बढ़ती जा रही थी। लग रहा था कि आज चाँद नखरे कर रहा है। तभी महेश ने ऑफिस का बैग रखकर पास आकर वर्षा के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा।

"चलो बाहर चलते हैं लांग ड्राइव पर"
वर्षा ने बड़ी थकी हुई सी आवाज में कहा
"नही आज नही बिल्कुल हिम्मत नही है"
"अरे चलो न पहला व्रत है इसलिये ऐसा लग रहा है, हम गाड़ी से उतरेंगे नही। अमेरिका की सड़कों पर ड्राइव करने का भी अपना ही मजा है"

वर्षा अनमने मन से गाड़ी में जाकर बैठ गयी। महेश पीछे पीछे आकर गाड़ी को घुमाकर सड़क पर ले चला। एक बड़े से खाली मैदान में जाकर गाड़ी रोक दी।

महेश ने वर्षा को गाड़ी से उतारा और आसमान की तरफ इशारा किया। वर्षा ने महेश को खुश होते हुए कहा।

"महेश जल्दी से चलो चांद को जल देते हैं घर जाकर"

वर्षा का इतना कहना था कि महेश ने वर्षा के हाथ में पूजा की थाली में सजा सामान और जल से भरा लौटा रख दिया।

"ये सब तुम साथ में लाये थे!"
"अब बातों में समय बर्बाद मत करो कहीं चाँद छिप न जाये।"

कहकर महेश हँस दिया। वर्षा ने सभी विधि विधान पूरे किए। ततपश्चात महेश ने वर्षा को पानी पिलाया। पानी पिलाने के बाद महेश बोल उठा,
"मुझे भी तो पानी पिलाओ मैं भी सुबह से भूखा - प्यासा हूँ"
वर्षा के आंखों से आंसू छलक आये। - नेहा शर्मा (दुबई)

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Bhawna Sagar Batra

Bhawna Sagar Batra 3 years ago

बहुत सुंदर

दादी की परी
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