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फिनिक्स - Neelima Tigga (Sahitya Arpan)

कविताअन्य

फिनिक्स

  • 167
  • 6 Min Read

फिनिक्स
जब जब मैं खिड़की को देखती
उस में मेरी ही तस्वीर नजर आती
वही चौखट में बंधी
जकड़ी सी एक जगह
उम्मीदों की हवाएँ
दिल के झरोंखे से
अंदर बाहर मचलती
या सूरज की किरण
अंधकार को चीरकर
आशाएँ विश्वास जगाती
चौखट में बंधी मैं
थोड़ी भी ना हिल पाती
रस्मों रिवाजों की सीमेंट
मेरे अरमानों की रेत बनाकर
बेड़ियों के पानी से
उसे और मजबूत करती
तेज हँवा के झोंकों से कभी
मन के पट खुल जाते
फिर से कोई सधे हाथ
उसे बंद कर देते
मैं भी पंछी बनकर
उड़ना चाहती हूँ
हिरणी की तरह भागते
कुलाचे लगाना हैं
मन के भावों के
गीत गुनगुनाना हैं
आँखों के सपनों को
पलकों के चिलमन से
मुक्त करना हैं
क्या ये संभव हो सकता?
क्या ये संभव हो सकता ?
मन मसोसकर रह जाती
दिल की गिरह अब
खोलकर देखना हैं
एक दिन हौसले के ताकत से
दीवार को हिलाया
ढीली होती खिड़की को
उड़ान भरने हँसाया
वह भी थी बेताब
चौखट से निकलने
कागज कलम के पतवार से
डूबते अरमानों को बचाया
पर्वाह ना करते हुए
बंदिशों को चिढ़ाकर
महकते शब्दों को
खुले आसमां में उड़ाया
सूरज की रोशनी में
उम्मीदों की धूप पाकर
खिलती कलियाँ भी
चटक रही थी
मस्ती में बादलों से ठिठोली करने
खिड़की ने भी आँख मारी
और मैं?मैं फीनिक्स बनकर खड़ी थी
बुझते हुए अंगारों पर
डॉ.नीलिमा तिग्गा’नीलाम्बरी’
स्वरचित, मौलिक

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Sarla Mehta

Sarla Mehta 3 years ago

वाह जी

Neelima Tigga3 years ago

हार्दिक आभार

Swati Sourabh

Swati Sourabh 3 years ago

बहुत सुंदर

Neelima Tigga3 years ago

हार्दिक आभार स्वाति जी

प्रपोजल
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