Help Videos
About Us
Terms and Condition
Privacy Policy
राज के दोहे "पाखंड " - राज कुमार मिश्रा (Sahitya Arpan)

कवितादोहा

राज के दोहे "पाखंड "

  • 488
  • 4 Min Read

राज के दोहे "पाखंड"

अब पृष्ठ्भूमि कर कुप्रथा, लिखता मुक्तक खूब!
राज धरम नित डूबता, लोग कहेै कवि मूढ़!

सब कहेेेै कवि मूढ़ महा, है कलयुग कि रीती,
राज कहत साँच बिना, जग की कैसी बीती!

काम क्रोध उर लोभ धरि, मठ पूजा करि आड़,
गरल पान दुरजन करै , करत साँच निष्प्राण!

कहहि राज साहब सुनो, दूर करो पाखंड,
मन मंदिर सच फाग करो, नेह करो नित रंग!

सत्य वचन और ज्ञान सब, सज्जन को है प्यारा,
लेकिन इनसे दूर है, मठ मस्जिद गुरुद्वारा!

राज कहत संसार की, बातें मानो जब,
स्व विवेक से पुस्ट होवे, बातें मानो तब!

यह रचना स्वरचित अप्रकाशित मौलिक :- राजकुमार मिश्रा,ग्राम:-राजधौं,जिला:- रीवा,म.प्र.

20201018_182838_1604127393.jpg
user-image
नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 3 years ago

matrayen gadbad hai dohe me 13, 11 ka charan hota hai check kijiyega plz

प्रपोजल
image-20150525-32548-gh8cjz_1599421114.jpg
वो चांद आज आना
IMG-20190417-WA0013jpg.0_1604581102.jpg
माँ
IMG_20201102_190343_1604679424.jpg
तन्हा हैं 'बशर' हम अकेले
1663935559293_1726911932.jpg
ये ज़िन्दगी के रेले
1663935559293_1726912622.jpg