कवितागजल
शरारत
कुछ नमकीन सा आजमाना चाहता हूँ I
लुत्फ़-ए-बचपन फिर उठाना चाहता हूँ II
शरारत करते रहो दिल रहे जवाँ
खर्राटों में दूसरोँ की नींद भगाना चाहता हूँ II
चलते चलते बेर खाने का मज़ा कुछ और है
झूठी गुठलियाँ तरकीब से उडाना चाहता हूँ II
सोयी बहना की भोली सूरत पर
मूंछ बनाकर सताना चाहता हूँ II
दरवाजे की ओट में छुपकर
भोs से सब को डराना चाहता हूँ II
फ़टाके फ़ोडने का मज़ा इस तरह
हाथ में लेकर अनार जलाना चाहता हूँ II
नाना के सफ़ेद बालों की बनाकर चोटी
बिंदी से उन का माथा सजाना चाहता हूँ II
पीछे बेंच पर बैठे अजीब सी आवाज़ निकालना I
शिक्षक के नज़र पे हँसी दबाना चाहता हूँ II
बचपन के दिन थे कितने सुहाने ‘नीलांबरी’ I
फिर से एक बार गुज़रा ज़माना चाहता हूँ II
स्वरचित तथा मौलिक
डॉ.नीलिमा तिग्गा'नीलांबरी'
28/10/20