कविताअतुकांत कविता
अतीत की ओर
नियति ने करवट बदली
अतीत की ओर चल दिए
कोरोना की महामारी से
जीवन शैली ही बदल गई
स्वच्छता सफ़ाई से
हर काम करने लग गए
चरण पादुका बाहर रख
गृहप्रवेश करने लगे
हाथ पैर धोने की आदत
अमल हम करने लगे
बुज़ुर्गों की ताकीदों पर
स्नान ध्यान करने लगे
पाठ पूजा हवन आदि
शुद्ध वातावरण करते
तन मन दोनों की शुद्धि
ध्यान आराधना करते
घर में रहकर प्रेम से
रिश्तें समझने हम लगे
नियमों के पालन से
संस्कार में ढलने लगे
दाल चांवल सब्ज़ी रोटी
सात्विक भोज करने लगे
पिज्जा नूडल्स पास्ता से
अब दूर हम रहनेलगे
जब भी विपत्ति आती है
कुछ सीख ही दे जाती है
अनुशासित ना रहे तो
सजाएं मिल ही जाती है
विज्ञान ज्ञान हुए विफल
वैद्य चिकित्सक हैं हतप्रभ
संजीवनी कोई ला न सका
बेबस मानव अब हार गया
ऐसे में उतरे देवदूत
श्वेत वसन पहने आए
खाकी वर्दी भी आ निकली
सेवा करने पीड़ितों की
जुट गए सभी स्वच्छता कर्मी
घर घर से कचरा उठाने को
राशन सब्ज़ी का करे प्रबन्ध
जान का जोख़िम भूल गए
अपने घरों में हम बैठे हैं
जयहिंद की सेना रक्षक है
घरबार से दूर ये रहते हैं
दिनरात का कोई भान नहीं
स्वरचित
सरला मेहता
इंदौर म प्र
इसमें व्यंग भी है. व्यंग इसलिए कि जूते बाहर रखना, बाहर से अंदर आने के पहले हाथ पाँव धोना और निरामिष, सात्विक आहार यह हमारी परंपरा है. लेकिन इसे हमरी धरोहर को भूलकर हम भागे जा रहे है अब कोरोना ने सब को फिर से अपनी संस्कृति की ओर लौटने मजबूर किया है जो विरासत मजबूत भो होगी.
जी,सही।आभार