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अतीत की ओर - Sarla Mehta (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

अतीत की ओर

  • 181
  • 5 Min Read

अतीत की ओर

नियति ने करवट बदली
अतीत की ओर चल दिए
कोरोना की महामारी से
जीवन शैली ही बदल गई

स्वच्छता सफ़ाई से
हर काम करने लग गए
चरण पादुका बाहर रख
गृहप्रवेश करने लगे

हाथ पैर धोने की आदत
अमल हम करने लगे
बुज़ुर्गों की ताकीदों पर
स्नान ध्यान करने लगे

पाठ पूजा हवन आदि
शुद्ध वातावरण करते
तन मन दोनों की शुद्धि
ध्यान आराधना करते

घर में रहकर प्रेम से
रिश्तें समझने हम लगे
नियमों के पालन से
संस्कार में ढलने लगे

दाल चांवल सब्ज़ी रोटी
सात्विक भोज करने लगे
पिज्जा नूडल्स पास्ता से
अब दूर हम रहनेलगे

जब भी विपत्ति आती है
कुछ सीख ही दे जाती है
अनुशासित ना रहे तो
सजाएं मिल ही जाती है

विज्ञान ज्ञान हुए विफल
वैद्य चिकित्सक हैं हतप्रभ
संजीवनी कोई ला न सका
बेबस मानव अब हार गया

ऐसे में उतरे देवदूत
श्वेत वसन पहने आए
खाकी वर्दी भी आ निकली
सेवा करने पीड़ितों की

जुट गए सभी स्वच्छता कर्मी
घर घर से कचरा उठाने को
राशन सब्ज़ी का करे प्रबन्ध
जान का जोख़िम भूल गए

अपने घरों में हम बैठे हैं
जयहिंद की सेना रक्षक है
घरबार से दूर ये रहते हैं
दिनरात का कोई भान नहीं

स्वरचित
सरला मेहता
इंदौर म प्र

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Swati Sourabh

Swati Sourabh 3 years ago

बेहतरीन सृजन

Neelima Tigga

Neelima Tigga 3 years ago

इसमें व्यंग भी है. व्यंग इसलिए कि जूते बाहर रखना, बाहर से अंदर आने के पहले हाथ पाँव धोना और निरामिष, सात्विक आहार यह हमारी परंपरा है. लेकिन इसे हमरी धरोहर को भूलकर हम भागे जा रहे है अब कोरोना ने सब को फिर से अपनी संस्कृति की ओर लौटने मजबूर किया है जो विरासत मजबूत भो होगी.

Sarla Mehta3 years ago

जी,सही।आभार

वो चांद आज आना
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तन्हाई
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प्रपोजल
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माँ
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