लेखआलेख
आलेख,,,,"अति से बचे "
अंग्रेजी में कहावत है-
Too much of freedom n too much restriction lead to chaos. अर्थात अधिक आज़ादी तथा ज़्यादा अनुशासन दोनों ही घातक है। हाँ, है तो सोचने वाला मुद्दा। नन्हे पौधों को ही देखे- यदि बहुत कम पानी सींचा तो सूख जाएंगे, अधिक मात्रा में पानी छिड़का तो गल जाएगें। ऐसे में क्यों न हम बीच की राह चुने। जैसे संस्कृत भाषा में भी एक श्लोक का अंश है- "सम्पतौ च विपत्तौ महतां एक रूपता " जी बिल्कुल , महान व्यक्ति अमीरी व गरीबी दोनों में एक जैसे रहते हैं। अतः यह सही है-"अति सर्वत्र वर्जते"
"वृन्दे वृन्दे मतिरेव भिन्ना" यानी प्रत्येक व्यक्ति की वृति प्रकृति भिन्न होती है। मानो इस जनसमुदाय रूपी बगीचे में रंग बिरंगे फूल हैं। प्रत्येक की अपनी विशेषता,पहचान होती है। किन्तु पूरे बगीचे का सौंदर्य अवर्णनीय है। इसी को कहते हैं कि अनेकता में भी एकता के दर्शन होते हैं।
समाज के विभिन्न क्षेत्रों में यह अति अवांछनीय प्रतीत होती है
💐सर्व प्रथम एक परिवार, घर को ही ले। पति व् पत्नी दोनों के सामंजस्य से गाड़ी गृहस्थी की चलती है। दोनों एक ही स्वभाव के हो तो ठीक वरना बेड़ा गर्क। पति की अव्यवस्थित आदतें पत्नी के लिए सर दर्द बन जाती है। पत्नी बेचारी सारा दिन घर को जमाने में लगाती है। पति आकर अपने जूते कपड़े आदि कहीं भी पटक देता है।
दोनों पक्षों की ओर से अति होकर घर की शान्ति भंग हो जाती है। अति अनुशासन वाले घर में बच्चों का जो स्वाभाविक विकास होना चाहिए ,नहीं होता।
💐विद्यालयों में भी ऐसा ही संतुलन आवश्यक है। कठोर नियमों के चलते,यूनिफार्म, देरी,गृहकार्य फ़ीस आदि के कारण बेवज़ह मासूमों को परेशान करना बचपन के साथ खिलवाड़ है। वैसे बिना कानून कायदों के भी बच्चे हर बात में बेलगाम हो जाते हैं। अतः मानवीयता के ही आधार पर नियमावली हो तो
नौनिहालों का मानसिक व शारीरिक विकास सुचारू रूप से होता है।
💐कार्यालयों में भी कार्य सुचारू रूप से होता है जब इस अति की वर्जना होती है। बहुत अधिक कसावट से बॉस व कर्मचारियों के बीच तालमेल नहीं रहता। ज़्यादा ढील से भी कार्य नहीं होता।तो क्यूँ न मध्यम मार्ग अपनाए।
💐देश के संदर्भ में भी भारत जैसे प्रजातांत्रिक देश में भी एक हद तक अनुशासन ज़रूरी है। चायना वाली बेहद कठोरता नियमों की भी ठीक नहीं।
निष्कर्ष यही कि अति सर्वत्र वर्जते।
सरला मेहता
बहुत सुन्दर परामर्श..! किसी भी चीज़ का आवश्यकता से अधिक होना. ठीक नहीं है. इसके आधार भी मानवीय सम्बन्ध होने चाहिए.