कवितालयबद्ध कविता
पनघट पे गोरी भीगे वसन
लहराते कुंतल चूमे पवन
नज़रें मिली पलकों में हया
कान्हा दिल में राधा जतन II
काहें छेड़त हो नंदलाल मोहन
होवत देरी मोहे पनिया भरन
क्यों फोड़े मोरी गागर मुरारी
बिनती करु तोसे शाम विलोभन II
भीगी चुनर मोरी ,मटकी जल बीन
बतियातीं सखियाँ होकर बैरन
नीर नयन में भरते भरते
छलके मोरे झील विलोचन II
मधुबन में सुन मुरली की धुन
राधा बावरी दौड़ी कानन
सरगम सी तोरी प्रीत फिर भी
अधर छूती बंसी ही भावन II
हौले से मुरारी बोले वचन
स्नेह दृष्टी से उसे निहारन
संग मोरा तब क्यों
अखियों में ये भरभर सावन II
रचना –डॉ.नीलिमा तिग्गा (नीलांबरी),अजमेर राजस्थान
22/10/2020