Help Videos
About Us
Terms and Condition
Privacy Policy
वो चली आ रही थी - Sudhir Kumar (Sahitya Arpan)

कवितालयबद्ध कविता

वो चली आ रही थी

  • 171
  • 7 Min Read

वो चली जा रही थी
हाँ, वो चली जा रही थी
लमहों से लुकाछुपी सी करती 
जिंदगी
कभी उनको छलती
और कभी खुद ही
उनसे छली जा रही थी
हाँ, वो चली जा रही थी

हर मोड़, हर पडा़व पर,
हर उतार पर, हर चढा़व पर,
बारी-बारी से मिलती जाती
हर एक धूप-छाँव पर,
अल्हड़ झरने की मनचली,
चंचल बूँदो सी,
राह के कंकड़-पत्थर पर
कुछ छिटककर,
हर लमहे की दहलीज पर
कुछ ठिठककर,
दबे पाँव, चोरी-चोरी, चुपके-चुपके
एक दस्तक सी देती जाती,
अहसासों के मोतियों को
आँचल में लपेटकर,
कुछ जज़्बातों का गीलापन
पलकों तले समेटकर,
दाता की सौगात समझकर
लेती जाती,
छोटी-छोटी सी खुशियों से
पल-पल नाता जोड़ती,
हर कल को पीछे छोड़ती,
हर एक नये कल की आहट पर
कदमों को जब-तब मोड़ती,
पल-पल एक नये साँचे में
ढली जा रही थी
हाँ, वो जिंदगी थी
जो चुपचाप
अपनी राह खोजती 
चली जा रही थी
हाँ, वो चली जा रही थी

धरती की वत्सल गोद में,
अंबर की नीली सी चादर ओढ़ के
कुछ उघडी़ सी, 
कुछ दबी-ढकी सी, 
कुछ दुबकी सी,
पुरवाई के सरगम से
लोरी सुनती सी,
हालातों की थपकियों के
हर एक पाठ को
शायद मन में गुनती सी
कुदरत की ममता भरी 
छाती से चिपकी, 
हर एक साँस की घूँट-घूँट भर,
जीते-जीते,
जीवन-रस को बूँद-बूँद कर
पीते पीते
पली जा रही थी
हर लमहे में 
खुद को तलाशती,
और कभी कड़वे 
अनुभव की छेनी से
अपनी ही मूरत 
गढ़ती और तराशती
चली जा रही थी

हाँ, लमहों से लुकाछुपी करती, 
जिंदगी
कभी उनको छलती
और कभी खुद ही उनसे 
छली जा रही थी
वो चली जा रही थी
हाँ, वो चली जा रही थी

द्वारा: सुधीर अधीर

logo.jpeg
user-image
Madhu Andhiwal

Madhu Andhiwal 4 years ago

Nice

प्रपोजल
image-20150525-32548-gh8cjz_1599421114.jpg
माँ
IMG_20201102_190343_1604679424.jpg
वो चांद आज आना
IMG-20190417-WA0013jpg.0_1604581102.jpg
चालाकचतुर बावलागेला आदमी
1663984935016_1738474951.jpg
वक़्त बुरा लगना अब शुरू हो गया
1663935559293_1741149820.jpg