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प्यार की ख़ातिर - Supriya Supriya (Sahitya Arpan)

कविताअन्य

प्यार की ख़ातिर

  • 315
  • 14 Min Read

प्यार की ख़ातिर

वो आती रहती थी मेरे घर, आज भी आती है, हमेशा आएगी। और उसके आते रहने का सबसे बड़ा कारण ये है कि ख़ता चाहे हो या नहीं उसकी कोई, इंसान वो वाक़ई अच्छी है।

उसको मैं यही कोई 15 सालों से जानती हूँ और इन 15 सालों में वो जितनी बार मुझसे मिली उतनी ही बार मुझसे और नज़दीक आयी है। उसकी सोच ने, उसके जज़्बे ने, उसकी हिम्मत ने, उसके अन्दाज़ ने मुझे हमेशा अंदर तक छुआ है।

उसका नाम सबाह है और अपने नाम की ही तरह वो उजली है। बेहद ख़ूबसूरत। बदन तराशा हुआ। देख कर कोई कह ही नहीं सकता था की ये प्यारी सी college student लगने वाली लड़की असल में 3 बच्चों की माँ है। इसके सामने तो मुझे वो संतूर वाली मम्मी भी पानी भरती सी दिखती थी।

एक दिन मैंने सुबह सुबह ही सबाह को बुला लिया, शाम को एक get together था और मुझे अपना चेहरा मोहरा ठीक करने की ख़ासा ज़रूरत थी। waxing बस निपटने को ही थी कि सबाह को चक्कर आया और वो गश खाकर गिर पड़ी। मेरा घबराना तो लाज़मी था। मैंने तुरंत अपनी एक gynaecologist friend को call किया और वो फटाफट आ भी गयी। सबाह को होश आया और check up हुआ तो पता लगा कि चौथा आने वाला है।

सुनते से ही मैं बिफर पड़ी उसपर। क्या बेवक़ूफ़ी थी। तीन बेटियाँ पहले ही हैं, चौथे के बारे में सोच भी कैसे सकती है। मुझे उसके घर परिवार के बारे में पता था, सो और फ़िक्र हो रही थी। पति को कोई परवाह नहीं थी, सास वैसे ही नाराज़ रहती थी की लड़कियों की line लगा दी है। मैं ग़ुस्से से कांप रही थी और वो एकदम शांत मुस्कुरा रही थी। मैं हैरान।

जब मेरा सारा ग़ुस्सा निकल गया तो मैं उसके बग़ल में बैठ गयी और उसका हाथ हल्के से सहलाया तो वो पिघल गयी और बोली... दीदी ये आने वाला बच्चा लड़कियों के बाद लड़के होने का trial नहीं है, ना ही ये कोई ग़लती है। अरे इतना सुन देख चुकी हूँ कि अब कोई असर ही नहीं होता। ये क़दम पूरे होश ओ हवास में लिया हुआ फ़ैसला है।

ये बच्चा, मेरा और नबील का है। नबील और मैंने एक ही parlour से काम सीखा था और पिछले 5 सालों से हम साथ हैं। मेरे पति को मुझसे कोई मतलब नहीं है, उन्हें सिर्फ़ मेरा कमाया हुआ पैसा चाहिए। वहीं दूसरी तरफ़ नबील पूरे दिल ओ जान से मुझे चाहता है। मुझे पता है कि बच्चों के चलते मैं अपने पति से अलग नहीं हो सकती और ना ही उसमें हिम्मत है मुझे छोड़ने की। लेकिन अब जब मेरा और नबील का प्यार जनम ले ही चुका है तो मैं इसे मारना नहीं चाहती। वो तो बिना नाम की माँग किए, पूरी ज़िम्मेदारी भी लेने को भी तैयार है।

अपना काम निपटा कर सबाह तो चली गयी पर जाते जाते मेरे ज़हन में कई सारे तर्क वितर्क छोड़ गयी।

आख़िर क्यूँ मैं उसे judge करूँ और नीची नज़र से देखूँ?
अपनी मर्ज़ी को पूरा करने की हिम्मत रखती है, किसी पे बोझ तो नहीं है। रही बात शादी से बाहर जाकर ऐसा क़दम उठने की तो प्यार में क्या पाप क्या पुण्य, प्यार तो सिर्फ़ प्यार है। बेपरवाह, बेइंतहा। शादी में रहकर उसे कौनसा सुख मिल गया है। यदि वो अपनी प्यार की निशानी को संजोना, पालना और पल पल आँखों के सामने खिलता हुआ देखना चाहे तो मेरी नज़र में वो कोई गुनाह नहीं है। आपकी नज़र में तो नहीं है ना। होना तो नहीं चाहिए।

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Ankita Bhargava

Ankita Bhargava 4 years ago

क्षमा करें पर यह रचना कहानी है कविता नहीं

नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 4 years ago

sach kahu to mujhe ye kavita kam kahani jyada lagi par acha laga ki aapne likhne ki koshish ki mujhe lagta hai ki aapko likhne ke sath sath padhna bhi chahiye. kyuki padhna humare lekhan ke maje ko doguna kar deta hai.

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