कहानीसामाजिक
#aursunao #the modern poet
" समय "
" प्रिया !!! "
टैक्सी रोकने के लिए उठा मेरा हाथ रुक गया । मुड़कर देखा तो विशाल खड़ा था कोई दस कदम दूर । अठारह साल बाद देखा , कभी जिसके बिना एक पल दूर रहना भी गँवारा नहीं था उसे , उससे कितना दूर थी वो , अलग अलग दुनिया थी दोनों की ।
कुछ भी तो नहीं बदला उसके व्यक्तित्व में , थोड़े से बाल उड़ गए थे आगे से और वो , वो भी कहाँ बदली ज्यादा , दो बच्चों के बाद बस थोड़ा सा पेट आ गया था ।
" कैसी हो ????" विशाल ने उसके विचारों की चादर झड़काते हुआ पूछा ।
" आँ .... अच्छी हूँ ,,,बहुत अच्छी हूँ , तुम बताओ । कैसे हो कैसी चल रही है ज़िंदगी , और तुम्हारी वाइफ कैसी है ? " मैंने सब्ज़ियों से भरे थैले थोड़े से और संभालते हुए ना चाहते हुए भी वाइफ के बारे में पूछ ही लिया ।
" हाँ , हम सब भी अच्छे हैं , एक बेटी है , सेकंड स्टैंडर्ड में पढ़ती है । मेरी वाइफ श्रुति एक बैंकर है । तुम बताओ तुम कहाँ जॉब कर रही हो , एम बी ए किया था ना तुमने । " मेरे बोझ को मुझे ढँग से थमाते हुए विशाल बोला ।
" ओह !! बैंकर है ...मैं ... मैं तो घर ही संभालती हूँ ।. पर तुम्हें तो औरतों का जॉब करना पसँद ही नहीं था , फिर कैसे .... बहुत बदल गए तुम । "
"बदल तो तुम भी गई हो , तुम्हें तो हर हाल जॉब ही करना था ........."
" समय सब कुछ बदल देता है विशाल ......टैक्सी ......."
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अनामिका प्रवीन शर्मा
मुंबई