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ऐ बचपन... - Champa Yadav (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

ऐ बचपन...

  • 409
  • 7 Min Read

ऐ बचपन...

ऐ बचपन तू थोड़ा और लंबा हो जा
करने दे मुझे अठखेलियाँँ
पकड़ने दे मुझे पतंग की डोर
मारने दे छक्के गेंद से मुझे
मैं छुप जाऊँ और खोजे मुझे मेरे दोस्त

ऐ बचपन तू थोड़ा और लंबा हो जा
हो जाए लड़ाई फिर छोटी-छोटी बातों पर
माँ मुझे प्यार करें और डाँटे, बड़े को
घूमने दे तू मुझे, पापा के गाड़ी में
बैठकर और थोड़ा.....

ऐ बचपन तू थोड़ा और लंबा हो जा
ना हो कोई परीक्षा की फिकर
ना हो कोई पैसे कमाने की होड़
ना हो कोई जिम्मेदारी का एहसास

ऐ बचपन तू थोड़ा और लंबा हो जा
कर लूँ मैं अपनी हर मनमानी
हो जाए, मेरी हर जिद्द पूरी
सो जाऊँ मैं थक के, माँ के गोद में
और माँ सोना बेटा बोल कर
मेरे हर दर्द, थकान को दूर कर दे

ऐ बचपन तू थोड़ा और लंबा हो जा
दादा- दादी,नाना-नानी का
प्यार बरसे मुझ पर.....
मेरी हर गलती को छुपा दे वे
उनके पीछे- पीछे घूमते रहूँ दिनभर

ऐ बचपन तू थोड़ा और लंबा हो जा
ना हो कोई दुनियाँदारी की फिकर
ना हो कोई माथे पर सिकन
ना सोचना पड़े मुझे कुछ
बस बिंदास जिऊँ गलतियाँ करूँ
और माँ थोड़ी डाँट लगा के छोड़ दे

ऐ बचपन तू थोड़ा और लंबा हो जा
ठहर जाए उम्र की ए घड़ी
जी लूँ मैं थोड़ा और बचपन
फिर कहाँ पाऊँगी मैं
इतना सारा प्यार अपनों का
फिर कहाँ होगा, जीवन के पथ पर
चलना इतना आसान
अगर कभी लड़खड़ाऊँ,
तो भी खुद ही होगा, सँभलना
कौन आकर उठा लेगा झट से गोद में
और पुचकार कर कहेगा, कहाँ चोट लगी तुझे

ऐ बचपन तू थोड़ा और लंबा हो जा
जीवन का असली आनंद तो तुझ में ही है बस!

इसलिए! ऐ बचपन तू थोड़ा और लंबा हो जा.....

@चम्पा यादव
9/10/20

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Champa Yadav

Champa Yadav 3 years ago

जी धन्यवाद.... आदरणीय!

Sudhir Kumar

Sudhir Kumar 3 years ago

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