कविताअतुकांत कविता
मुझे हारकर जीत जाने दो
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मैं हारा तुम जीत गयी
अभी अभी है हमारी प्रीत नयी
तुम्हें मजा आया होगा
जब तूने विफल कर दिए मेरे हर प्रयास
परिणाम तूने तय कर रखे थे
टूटने ही थे आस |
बस एक तेरी बोली सुनने की चाह थी
न जाने कब से मन में इसकी प्यास थी |
पूरी न हुई अधूरी ही रह गयी
मैं तो निकट आ गया
तेरे मन में दूरी ही रह गयी |
सिमट सी गयी तुम
अपने ही आँचल में
पलकें नहीं उठने दी
तेरे ही आँखों के काजल ने
मुझे भी पता है
तू कितनी शर्मिली है |
पर तुझमें ही उसे देखा
जो चंचल शोख हठीली है |
तेरे चेहरे पर भी खिले हैं रंग
तू भी रंग रंगीली है |
खोल दो झऱोखों को
थोड़ी हवा तो आने दो
गाओ कोई गीत नया
कानों में रस घुल जाने दो |
प्यार के इस खेल में
मुझे हारकर जीत जाने दो |
कृष्ण तवक्या सिंह
14.10.2019