कवितालयबद्ध कविता
दूरियां बहुत है हमारे बीच
शहरों की, देशों की व समुद्रों की
हां फिर भी है आज भी ये बात कि
मुझे तू अपना सा लगता है ।
खामियां बहुत है हमारे बीच
बातों की, ख्वाबों की व आदतों की
हां फिर भी है आज भी ये बात कि
मुझे तू अपना सा लगता है ।
कठिनाइयां बहुत है हमारे बीच
राहों की, सफर की व मंजिलों की
हां फिर भी है आज भी ये बात कि
मुझे तू अपना सा लगता है ।
परेशानियां बहुत है हमारे बीच
बेबसी की,जिम्मेदारी की, मजबूरियों की
हां फिर भी है आज भी ये बात कि
मुझे तू अपना सा लगता है ।
निशानियां बहुत है हमारे बीच
यादों की, वादों की व कसमों की
हां बहुत सच है आज भी ये बात कि
मुझे तू अपना सा लगता है ।
स्वरचित व मौलीक रचना
© पुष्पा श्रीवास्तव
बाँसवाड़ा (राजस्थान)