कविताअतुकांत कविता
स्वरचित कविता (आज का लेखन-5-10-2020)
शीर्षक-"अपना सा"
इतने कष्ट-कंटकों में भी-
हिलमिल रहता है,
यह गुलाब सा कोमल तन-
खिलखिलकरता है.
खाना-पीना और सफाई-
पौधों की हर रोज गुड़ाई,
हष्ट पुष्ट है दिलोदिमाग से-
फिर भी डरता है.
दिनभर दौड़ भाग में डूबा-
सबकी सेवा करता,
कहें सभी आया पहाड़ से-
फिर भी झुककर चलता.
बस्ता लेकर नित मेरा वो-
संग संग चलता है,
पलटे,ताके दूर तलक -
हाथों को मलता है.
वो है चौकीदार का बेटा-
घुल मिलकर रहता है,
मेरे दादी भी कहती-
ये ही रौनक रखता है.
उसकी बेबस नजरों में-
मीठा सा दर्द पनपता है,
पास बैठाकर कहूँ-
#मुझे _तू _अपना_ सा _लगता_ है.
स्वरचित-
डा.अंजु लता सिंह
नई दिल्ली