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"अपना सा" - Anju Gahlot (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

"अपना सा"

  • 91
  • 3 Min Read

स्वरचित कविता (आज का लेखन-5-10-2020)

शीर्षक-"अपना सा"

इतने कष्ट-कंटकों में भी-
हिलमिल रहता है,
यह गुलाब सा कोमल तन-
खिलखिलकरता है.

खाना-पीना और सफाई-
पौधों की हर रोज गुड़ाई,
हष्ट पुष्ट है दिलोदिमाग से-
फिर भी डरता है.

दिनभर दौड़ भाग में डूबा-
सबकी सेवा करता,
कहें सभी आया पहाड़ से-
फिर भी झुककर चलता.

बस्ता लेकर नित मेरा वो-
संग संग चलता है,
पलटे,ताके दूर तलक -
हाथों को मलता है.

वो है चौकीदार का बेटा-
घुल मिलकर रहता है,
मेरे दादी भी कहती-
ये ही रौनक रखता है.

उसकी बेबस नजरों में-
मीठा सा दर्द पनपता है,
पास बैठाकर कहूँ-
#मुझे _तू _अपना_ सा _लगता_ है.

स्वरचित-
डा.अंजु लता सिंह
नई दिल्ली

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नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 3 years ago

बहुत ही सुंदर रचना

वो चांद आज आना
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तन्हाई
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प्रपोजल
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माँ
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