कविताअन्य
दुशासन को बचाए प्रशासन, बाबू ये काहे कि सरकार है,
बहरे भए हो किस कदर क्यूं ना सुन रही बेबस की चीत्कार है|
मजलूम बेचारी को देख बेबस दरिंदो ने शिकार बनाया था
करके मनमानी भेड़ियों ने रसूख का भी खूब धौंस जमाया था|
वो भी तो समझ वतन को आजाद हो निर्भय चलती थी,
थी साधारण सी बेटी वो क्या यही उसकी कोई गलती थी?
मानवता के दुश्मन राक्षसों ने नौंच नौंच उसको खाया था,
पर भला बता तो दो किस मुलाजिम ने कर्तव्य निभाया था?
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का नारा आपने खूब रटवाया था,
क्या इसी हश्र के लिए बेटियों को भ्रूणहत्या से बचवाया था?
जिंदा थी तो अस्मत लुटी बदन ही नहीं मन भी कहराया था,
मृत के साथ हुए सलूक - ए - सल्तनत ने भी सिहराया था|
औकात ए अफसर भी ऐसी क्या? या सिर्फ मोहरा बनाया था,
जो रख ताक पर शर्म हया जंगल राज का नंगा नाच दिखाया था|
बनाया अयोध्या में राम मंदिर हिंदूवाद भी क्या खूब दिखलाया था,
वाल्मीकि वंश महफूज नहीं जिन्होंने कलम से रामायण रचवाया था|
अब छोड़ो लीपापोती कुछ ठोस करो हो रहा भगवा शर्मशार है,
बहरे भए क्यूं इस कदर ना सुन रही मजलूम बेबस की पुकार है|
दुशासन को बचाए प्रशासन, बाबू ये काहे कि सरकार है,
बहरे भए हो किस कदर क्यूं ना सुन रही बेबस की चीत्कार है|
मैन पाल माचरा
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