कविताअतुकांत कविता
स्वरचित मौलिक:: तुझमें हुनर है
तुझमें हुनर है ,
तो आगे बढ़।
अपने हुनर की एक,
इमारत तो खड़ी कर।
उसमे हजार हुनरमंद ,
तु तैयार तो कर।
अपने हुनर की एक ,
मिशाल तो खड़ी कर।
उस हुनर से हजारों के ,
घर माहताब तो कर।
तुझमे जो हुनर है ,
वह फूल बनकर खिलेगा।
गरीबो की झोपड़ी में,
दिये की रोशनी सा जलेगा।
तु अपने हुनर की एक,
इबादत तो खड़ी कर।
इस देश मे हुनरमंद बच्चों की,
फौज तो खड़ी कर।
गर तुझमे हुनर है तो चल,
इस देश मे खुद रोजगार तु पैदा कर।
प्रियंका पांडेय त्रिपाठी
प्रयागराज उत्तर प्रदेश
शानदार...
आपका हार्दिक आभार धन्यवाद