कहानीप्रेरणादायक
लघुकथा : " गुलाल "
पाँच वर्षीय देव उदास चेहरा लटकाये मम्मी से बोला - " मम्मी मुझे भी पिचकारी चाहिए देखिए ना राहुल , प्रिया , राज सब तो होली खेल रहे हैं अौर आप मुझे ही होली खेलने से मना कर रही हो। "
नम्रता ने स्नेह से गोद में बिठाकर कहा - " आप से कितनी बार कहा बेटा , तीन साल से हम लोग होली नही मना रहे हैं।"
देव ने गोदी से उतर कर कहा - " आखिर क्यों मम्मी? सब बच्चे खेल रहे हैं हम क्यों नही।"देव की आँखों में आँसू आ गये तो
नम्रता ने सिर पर हाथ फेर कर समझाते हुए कहा - " बेटा आज के दिन तेरे पापा भगवान के घर चले गये थे ।इसलिए हम होली नही मनाते। अगर हम होली खेलेंगे तो पापा को बुरा लगेगा, लगेगा ना। " देव को गले से लगाके रोने लगी। तभी दरवाजे पर खट खट की आवाज आई दादाजी ने अंदर आते ही कहा - " बहू . . . ।"
नम्रता ने देखा अौर कहा - " हाँ बाबूजी ?"
बाबूजी ने बेग रखते हुए कहा - "अरे भाई मैंने सुना , किसे बुरा लग जायेगा ।" देव ने देखा तो तुरंत दौड़ कर दादाजी के पास आया अौर बोला- " दादाजी ।" दादाजी ने गोद में लेकर कहा - " अौर आप क्यों रो रहे हो ? "
नम्रता ने कहा - "बाबूजी देखो ना ये देव होली खेलने की कितनी जिद्द कर रहा है। आप ही इसे समझाईए ।" कहते हुए आँखों से आँसू टपकने लगे।
नम्रता को देख दादाजी की आँखें भी गीली हो गई। हाथों से आँखों को पोंछ कर कहा -" अरे , मेरा बेटा भारत माँ के लिए खून की होली खेल कर चला गया अौर तू देव को रंगों की होली खेलने के
लिए मना कर रही है। " देव से कहा- " चल बेटा , हम अभी रंग पिचकारी लायेंगे , तू खेलेगा ना होली? "
अौर जाते-जाते नम्रता से कहा -" बेटा , अगर हम माँ-बाप फौज में जाने का मना कर देते तो . . .। फिर ये तो होली खेलने की ही जिद्द कर रहा है अौर त्यौहार तो बच्चों से ही अच्छे लगते हैं। इन्हें देख कर दु:ख हल्का हो जाता है।"
नम्रता ने आँसूअों को पोंछकर कहा - " बाबूजी गुलाल भी लेते आना । भगवान को लगा दूँगी,क्योंकि वे सबसे पहले भगवान को ही लगाकर होली खेलते थे ।"
डॉ . विनोद नायक
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