कविताअतुकांत कविता
चुनाव
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चुनाव फिर से आ गया
आँखों में नशा सा छा गया
उतारे थे जो हमने इस बीच जो चश्में
वह जाति और धर्म के रंगों में रंगकर
नई खूबियाँ लैकर
फिर हमारी आँखों पर आ गया |
इससे अपनी जाति का रंग हरा
और दूसरी जाति का रंग लाल दिखता है |
दूसरी जाति दिखती कायर और क्रूर
अपनी जाति के अन्दर गुण कमाल दिखता है |
खो जाते हैं योग्यता और प्रतिभा की पहचान करनेवाले
देशप्रेम की आह भरनेवाले
विकास की चाह रखनेवाले
गरीबी पर अनुसंधान करनेवाले
सपनों को हकीकत का श्रृंगार करनेवाले
बदलाव का बयार लानेवाले
विज्ञान से बहार लानेवाले
इन्हें कोई नहीं पूछता
बस ये तस्वीरों में या पत्थरों की वैदियाँ बनकर
एक कोने में रखे रह जाते हैं |
इनके जीते जी या मरने पर बस इनके नाम लिए जाते हैं
काम तो आती हैं बन्दूकें और लाठियाँ
जो एक दूसरी जाति का जुबान बँद रख सकती हैं
दूसरे धर्म के लोगों को अपनी शान दिखा सकती है
जिनके हाथ में यह ताकत है ,वही वीर है
चाहे वह कितना ही धूर्त हो |
कितनों के पीठ में छुरा घोंपा हो
कितनों की जमीनें हड़प ली हो
कितनों की जाने ली हो
जिसके डर से धरा थर थर काँपती
उसे हम अपना सिरमौर चुनते हैं |
वही हमारे लिए संविधान बनाएँगे
न्याय करने के लिए हम उन्हें महापौर चुनते हैं |
नफरत और घृणा की बहती आँधी में
प्रेम की बयार विलीन सी हो जाती है |
गुंडे पहन लेते हैं नायकों का चोला
नायक दीन हीन हो जाते हैं ` |
फिर जनता कराहती है ,ये कहाँ करवट बदलते हैं
सभी को रौंदते ये सरपट चलते हैं |
दोष किसे दूँ ,सब संरचना का दोष है
जमीन पर जो हो रहा
कैसे कहूँ आसमान पर रहनेवाले की रचना का दोष है |
कृष्ण तवक्या सिंह
07.10.2020