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सूरज - नेहा शर्मा (Sahitya Arpan)

कविताबाल कवितालयबद्ध कविता

सूरज

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अक्सर थककर रातों को जब सूरज सो जाता है।
तब आसमां के पीछे से चाँद जमीं पर आता है।

होती है हैरानी मुझको किसके आँचल में सो जाता है।
रखकर सर तकिये पर क्या वो भी खुद को तन्हा पाता है।

या बनती है अनेक योजनाएं उसके भी मस्तिष्क पटल पर
या फिर सपनों की दुनिया में वो भी ऐसे ही खो जाता है।

मिला हुआ है क्या लंबे जीवन का वरदान उसे भी।
या सजा रात में ना आने की वो बादलों से अपनी पाता है।
कहीं सूरज भी तो नही शर्माता है, इसलिये बादलो में छिप जाता है। - नेहा शर्मा

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