कविताअतुकांत कविता
प्यार
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शायद प्यार इसे ही कहते हैं
स्मृतियों को नकारता
नये अनुभव की तलाश करता
भरोसा है फिर भी शंका है
बैठने नहीं देती यही शंका
प्यार आश्वस्त नहीं करता
यह हर पल सजग रहने को
बाध्य कर देता है
कहीं लूट ने कोई प्यार मेरा
जगत में बहुत सारे लुटेरे हैं
रोशनी की खोज में हम
ढूूँढ़ते अंधेरे हैं
शायद इन्हीं विरोधाभासों के बीच
प्रेम अपनी यात्रा करता है
छूट जाता है वह कहीं
जो हर पल मापा मात्रा करता है |
कृष्ण तवक्या सिंह
07.10.2020.
बहुत सुंदर परिभाषा दी है आपने प्यार की।
धन्यवाद !