कहानीअन्य
धोखा
“तो फिर कल की तैयारी है ना ? मिशन करीमगंज में कोई भी गलती नहीं होनी चाहिए..और हाँ, अगर कोई रास्ते में आए तो सीधे गोली से उड़ा देना।“ जग्गन तेज़ आवाज़ में सबको हिदायतें दे रहा था।
इनका वर्चस्व असम के उत्तरी इलाकों में था। अपहरण और हिंसक अपराधों की वजह से यह संगठन सेना के निशाने पर था।
ठंड से बचने की जुगत में कानों पर मफलर लपेटे, नारायण कुछ सोच रहा था। करीमगंज जहां उसके नाना का घर था और वृंदा उसके बचपन की दोस्त, जिसके साथ उसने उम्र गुजारने की कसमें ली थीं। वृंदा की याद आते ही उसके दिल में भावनाओं की लहरें उठने लगीं। सब कुछ तो छोड़ आया था वह करीमगंज में। चार साल पहले इस संगठन से जुड़ा था लेकिन आज क्या उसमें हिम्मत थी अपने ही लोगों पर गोलियां चलाने की? उनको धोखा देने की?
उसका मंतव्य तो सरकारी तंत्र को हिला कर अपनी मांगे मनवाना था।
“क्यों नारायण, क्या सोच रहा है?” एम-20 पिस्तौल और एक राइफल उसके हाथ में थमाते हुए जग्गन बोला।
“मेरी नज़र अपने ‘मकसद’ पर है बाबा।“
यह सुनकर जग्गन ज़ोर से हंसा और उसकी पीठ पर थपकी दे कर दूसरे सदस्यों से बात करने लगा।
दो दिन बाद अखबार में खबर छपी कि एक आदिम जनजाति संगठन के सदस्य ने सेना के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था और अपने ठिकानों की जानकारी भी दी जिससे सेना को भारी मात्रा में हथियार बरामद हुए। उसके पुनर्वास से पहले सेना औपचारिक “आत्म समर्पण” का आयोजन कर रही थी उधर जग्गन जेल में बैठा चिल्ला रहा था "धोखा दिया उसने"
अनुजीत इकबाल