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पीड़ा का विभाजन - Krishna Tawakya Singh (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

पीड़ा का विभाजन

  • 138
  • 4 Min Read

पीड़ा का विभाजन
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जातियों और समाजों में हम हर पीड़ा को बाँट लेते हैं |
एक दूसरे से हम कैसे अपने आपको काट लेते हैं |
बस बाँटने और काटने के औजार हमने बनाए हैं |
वर्णभेदी हथियार हमने खूब चलाए हैं |
कोई मर गया यह दु: ख का कारण नहीं
उसकी जाति का नाम सुन दु: ख उमड़ आता है
धर्म की बात कर दो तो और सिर चढ़ जाता है |
न तो खोज इसके कारण की कोई करता
न हि इसके निवारण की |
जातियों में बाँट कर देखता है इसे
चिंता करता अपने विजय पताका धारण की
हे ईश्वर ! क्या तुमने इसके हृदय को कई खंडों में बाँटा है
इनकी संवेदनाओं को कितने हिस्सों में बाँटा है |
इस बाँसुरी में जितने छेद हैं
उससे ज्यादा अवरोध लगा रखे हैं इन्होंने
इसलिए अब ध्वनि आर पार नहीं जाती
तुम्हारे संदेश कई हिस्सों बँटकर बिखर जाते हैं
और ऐसी आवाज आती है भयानक
कि हम डर जाते हैं |

कृष्ण तवक्या सिंह
05.10.2020.

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नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 3 years ago

बेहतरीन सटीक ??

Krishna Tawakya Singh3 years ago

धन्यवाद !

वो चांद आज आना
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तन्हाई
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