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बेटी हूं मैं : पराया धन ना कहना - Swati Sourabh (Sahitya Arpan)

कविताअन्य

बेटी हूं मैं : पराया धन ना कहना

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बेटी हूं मैं:पराया धन ना कहना


एक ही मां की कोख से जन्में बेटा बेटी,
तो कैसे केवल बेटा अपना ,पराई है बेटी?
बचपन बिताया इसी आंगन में,हमेशा घर में खुशियां लाई।
बन कर रही पिता की लाडली,मां के आंचल में ममता पाई।
बचपन से ही क्यूं न बताया,क्यूं अपनेपन का प्यार जताया?
ये घर नहीं तुम्हारा अपना, पल में ही कर दिया पराया।
जग ने कैसी ये रीत बनाई, शादी होते ही बेटी पराई!


छोड़ दिया अनजान के साथ,समझाया तुम्हारा ये नया संसार।
अनजानों को भी अपना बनाया,नई नई जिम्मेदारियां भी आईं।
जब भी हुई कोई गलती तो,मेरे संस्कारों पर उंगलियां उठाई।
घर में रही लाडली बनकर,कहां किसी ने की बुराई?
मां ने हमेशा प्यार से समझाया,पिता ने किया हौसला अफजाई.
पराए हुए अपने ,अपने पराए,समाज ने कैसी ये प्रथा बनाई?
एक पल में कर दिया पराया,शादी होते ही बेटी पराई!


जिगर का टुकड़ा कहते हो ,फिर खुद से दूर कर देते हो।
ठहर गई घर आकार कुछ दिन,सब पूछते हैं रहोगी कितने दिन?
एहसास कराते बेटी है पराई,क्यों ये प्रथा केवल बेटी के लिए बनाई।
दोनों कुलों का मान रखूंगी,आपके सम्मान का ख्याल रखूंगी।
चाहूं ना कुछ और मैं पापा, बस इतना अधिकार मुझे देना।
बेटी हूं मैं आपकी अपनी , कभी पराया धन ना कहना।
शादी होते ही ना कह देना,बेटी तुम अब हो गई पराई।

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Champa Yadav

Champa Yadav 3 years ago

Nice...

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