लेखअन्य
यात्रा वृतांत: रेल यात्रा में पराठे और अचार की महक
रेलवे के सफर का अपना एक अलग ही रोमांच होता था, खासकर जब हम आज से चालीस-पचास साल पहले के दौर की बात करें। वो समय जब सफर के साथ घर की बनी पूड़ियों और पराठों की महक से ट्रेन का डिब्बा खुशबू से भर जाता था। और आम का अचार? उसकी तो बात ही निराली थी! उसकी सोंधी महक पूरे डिब्बे में ऐसी बिखरती थी कि अगर आपने अपने टिफिन में अचार नहीं रखा तो आपको भी ऐसा लगता था कि अरे, कुछ तो कमी रह गई!
डिब्बा खुलते ही खुशियों का खुलासा
जैसे ही ट्रेन की रफ्तार बढ़ती और सफर की शुरुआत होती, ठीक उसी समय टिफिन के डिब्बे भी खुलने लगते। अखबार में लिपटी हुई पूड़ियाँ और पराठे, और उनके साथ वो कड़क मसालेदार अचार, जिसे देखकर ही मुंह में पानी आ जाए। आलू की सूखी सब्ज़ी, भरवाँ भिंडी या भरवाँ करेला भी इस के खास साथी होते थे। इनकी खुशबू हवा में तैरती, और पूरी बोगी को अपने जादू में बाँध लेती।
अद्भुत सामूहिकता का अनुभव
सफर के इस हिस्से में सबसे बड़ी खूबसूरती ये थी कि खाना सिर्फ अपने लिए नहीं होता था। जैसे ही किसी का डिब्बा खुलता, आसपास बैठे यात्री, जिनसे आप एक घंटे पहले तक बिल्कुल अनजान थे, अब आपके सबसे अच्छे दोस्त बन जाते। एक मुस्कान, एक निमंत्रण, और फिर खाना आपस में बांटने का सिलसिला शुरू हो जाता। "लीजिए, आप भी खाइए," ये शब्द हर तरफ गूंजते थे। अचार का टुकड़ा या पूड़ी का एक टुकड़ा, सब कुछ मिल-बांट कर खाया जाता था।
सफर में अपनापन
ये वो समय था जब ट्रेन का सफर महज़ गंतव्य तक पहुंचने का जरिया नहीं था, बल्कि एक अनूठा अनुभव था जो हमें दूसरों से जोड़ता था। उस वक्त की ट्रेन यात्रा में कोई पर्दा नहीं होता था। लोग एक-दूसरे से बातें करते थे, एक-दूसरे को अपने खाने का हिस्सा बनाते थे, और साथ में हंसते-खेलते सफर करते थे। थोड़ी देर में ही वो अजनबी यात्री आपके परिवार का हिस्सा बन जाते थे।
उस दौर की यादें
आज जब हम वापस उस दौर की यादें ताजा करते हैं, तो लगता है कि वो साधारण सा सफर, जिसमें पराठे और अचार की महक थी, असल में कितना खास था। वो अपनापन, वो बंधन, जो यात्रियों के बीच बनता था, वो शायद आज के हाइटेक युग में कहीं खो सा गया है। लेकिन ये यादें आज भी दिल को गुदगुदा देती हैं और हमें उस सरल, सादगी भरे समय की याद दिलाती हैं, जब रेल का सफर जीवन का एक ऐसा अनमोल हिस्सा था, जिसे भुलाया नहीं जा सकता।
~ संजय निगम ~
पहले के समय में, परिवार के साथ रेलयात्राएं बड़ी रोचक होती थीं. घर की बनी पूरी - कचौरी अचार. तब यात्राएं भी कुछ लंबी हो जाया करती थीं..! इतनी सुपर फास्ट ट्रेनें भी नहीं होती थीं.
पहले की रेल यात्रायें शायद उस समय के समाज का आईना ही थीं। किसी भी समय समाज का प्रतिबिम्ब उस समय की प्रत्येक घटना में परिलक्षित होती है।