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दिल चाहता है - Sarla Mehta (Sahitya Arpan)

कवितागजल

दिल चाहता है

  • 152
  • 3 Min Read

# 25 सितंबर

दिल चाहता है

ये कैसी फिज़ा है
ये कैसा है मंज़र
आंसू बहाने को दिल चाहता है
कभी थे नज़ारे
खिली थी बहारें
उन्हें फिर बुलाने को दिल चाहता है
बंदिश नहीं थी
सुंकू था जहां में
वही कर गुज़रने को दिल चाहता है
तारों भरा वो
खुला आसमां है
के चंदा से मिलने को दिल चाहता है
घुमड़ते वो बादल
वो बारिश की बूंदे
ज़रा भींगने को दिल चाहता है
ये कागज़ के पन्ने
स्याही कलम की
कुछ लिखने लिखाने को दिल चाहता है
ये नीला गगन
और नीला सा दरिया
कश्ती चलाने को दिल चाहता
है
खनकते ये कंगन
छनकते ये पैंजन
घूमर रचाने को दिल चाहता
है
सरला मेहता

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Mamta Gupta

Mamta Gupta 3 years ago

बहुत ही सुंदर रचना । सच मे दिल चाहता है हर दर्द को कलम के द्वारा सभी के सामने लाने का।

Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

बहुत खूब..!

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