कहानीसामाजिकप्रेरणादायक
प्रेरणा
कई महीनों से फैक्ट्री बंद थी। दो-तीन महीने तो मालिक ने तनख्वाह दी। जब काम ही नहीं था तो वह भी कब तक वेतन देता। एक दिन उसके घर मालिक की ओर से नोटिस आया कि उसे नौकरी से निकाल दिया गया है। पिछले कई दिनों से वह बहुत मानसिक तनाव में था। महामारी के इस दौर में जब सब जगह छंटनी हो रही थी तो कहीं दूसरी नौकरी खोजना भी बड़ा मुश्किल था। एक आसान सा रास्ता सूझा उसे। घर परिवार, दुनियादारी की सारी ज़िम्मेदारियों से दूर भागने का। जानते हैं कौन सा रास्ता.... आत्महत्या का। रात भर सो नहीं पाया था वह। अपने गले में पड़े हुए फांसी के फंदे की कल्पना कर रहा
था। इधर दो-तीन महीने से शहर छोड़ गांव आया था। घर में वृद्ध माता पिता, पत्नी और एक छोटा बच्चा था।
एक दिन उसने पूरी तैयारी कर ली थी, अपने जीवन को फांसी के फंदे को सौंपने की। मां पिछले कुछ दिनों से बीमार थी। आज कुछ ज्यादा ही तबीयत खराब हो गई थी उसकी। दिन का समय था। पत्नी दोनों बच्चों को लेकर खेत में गई थी और वृद्ध माता-पिता अपने कमरे पर लेटे हुए थे। पत्नी का दुपट्टा लेकर वह जैसे ही तैयार हुआ। मां की कराहने की आवाज आयी। उसे पिता के कमरे में लगीं वीर क्रांतिकारियों की तस्वीरें याद आ गई, जिनकी कहानी वह उसे बचपन में सुनाया करते थे। उसे अपनी कायरता का एहसास हुआ। उसने महसूस किया यह समय मां को किसी डॉक्टर को दिखाने का है, कर्तव्य से दूर भागने का नहीं। फांसी के फंदे पर तो भगत सिंह और अन्य क्रांतिकारी भी झूले थे पर उनकी मां को गर्व था उनकी शहादत पर। यहां तो ये मां जीते जी मर जाएगी, अपनी बीमारी से कम बेटे की कायरता से ज़्यादा। वह माता-पिता के कमरे की ओर चल दिया, मां को किसी डॉक्टर या वैद्य को दिखाने...।