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सृजन और विध्वंश - Krishna Tawakya Singh (Sahitya Arpan)

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सृजन और विध्वंश

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सृजन और विध्वंश

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जो संस्थाएँ कल सृजित की गयी थीं | जरूरी नहीं कि वे उन उद्देश्यों की पूर्ति आज भी कर रही हों | या तो वक्त के साथ उसके लक्ष्य बदल जाते हैं या उससे जुड़े लोग उसपर अपना कब्जा जमा लेते हैं और अपने न्यस्त स्वार्थ की पूर्ति के लिए उसका उपयोग करने लगते हैं | वे इन संस्थाओं में अपने आदमियों को इस तरह भरते हैं और उनके उसमें जमें रहने के ऐसे नियम बनाते हैं जिससे पार पाना नयी व्यवस्था के बस में नहीं होता | जो सरकारें इन चीजों पर धयान नहीं देती जल्दी ही गिर जाती है या यूँ कहिए गिरा दी जाती है | क्योंकि ये सभी स्थापित जो पूर्व की शासन व्यवस्था ने बनाया था और अपने आदमियों को बिठाया था | वे सदा बदलाव का विरोध करती हैं ,क्योंकि उनमें उनके न्यस्त स्वार्थ हैं |
कोई भी सरकार कुछ नियमों को ,और संस्थाओं को क्यों बदलना चाहती है क्योंकि ये नयी सरकार के कानून को लागू करने देने में सबसे बड़ी बाधा हैं | इनका काम किसी भी नये कानून का व्रिरोध करना होता है क्योंकि भ्रष्टाचार में ये इतने लिप्त होते हैं कि कोई भी नया कानून और नयी व्यवस्था इनमें भय पैदा कर देती है |
जो राजनीतिक दल या सामाजिक संस्थाएँ नयी व्यवस्था या कानून का विरोध करती है वह जनता की बड़ी हितैषी नहीं है ,वे अपने हितों पर प्रहार होता देख तिलमिला जाती है | वह सोचती है कि भले ही सत्ता उसकी न रही हो पर संस्थाएँ अगर उनकी बनायी ही रहेगी तो नयी लरकार की नीतियाँ पूरी तरह लागू नहीं हो पाएँगी और सरकार जल्दी ही अलोकप्रियता का शिकार हो जाएगी और गिर जाएगी | फिर उन्हें सरकार चलाने में अक्षम सिद्ध करके अपनी योगयता सिद्ध कर लेंगे |
इसलिए नयी व्यवस्था आने पर पुरानी संस्थाओं को बदलना पड़ता है या उसका विध्वंश कर नयी संस्था बनानी पड़ती है जिसमें उनके आदमी होते हैं जो उनकी बनायी नीतियों को लागू करते हैं |
नयी सरकार को इस विध्वंश का काम बड़ी चतुरायी से करना पड़ता है | क्योंकि इसमें बैठे लोग बड़े धूर्त होते हैं | ये जनता को हर नीतियों की गलत व्याख्या कर समझाने मे बडे माहिर होते हैं | इनकी चुनौतियाें से निपटना सरकार के लिए आसान नहीं होता | इसलिए पुरानी संस्थाओं का विध्वंश इतना आसान नहीं होता | शिव बनना पड़ता है | और मंथन से निकले विष को कंठ में रखना पड़ता है | मंथन करना पड़ता है हर बार ,और वही अमृत दुनियाँ को दे पाते हैं जो कँठ में विष रख पाने में सक्षम हों |

कृष्ण तवक्या सिंह
24.09.2020.

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नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 3 years ago

बहुत खूब व्यंग्य अच्छा लिखा है आपने सच्चाई बयान करता हुआ

Krishna Tawakya Singh3 years ago

सराहना के लिए धन्यवाद

समीक्षा
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