कविताअतुकांत कविता
समसामयिक रचना
माँ भारती शर्मसार हो गई
पाशविक दहलाती करतूतें
हदों से ही गुज़र गई
दरिंदों की दारुण बेहयाई
अब सीमा पार हो गई
नैतिक मूल्यों की वो बातें
कहाँ बिखर बिसर गई
अमानवि दुःशासिनी हरकतें
अब तो कारगार हो गई
देवियों से पूजित बेटियों की
चुनरी क्यूँ तार तार हो गई
ये मासूम अधखिली कलियाँ
अब दर्द से बेज़ार हो गई
नोची खसोटी गई कई गोरियाँ
अनब्याही ही आज रह गई
ख़्वाबों की सुरमई गलियों से
बदनाम बस्तियाँ बन गई
शिवानी एलीना आसिफ़ा सी
निर्भया दामिनी चली गई हाथरस में मनीषा की हड्डियाँ
हथौड़े से चूर चूर हो गई
ना रहा भय महामारी का इन्हें
दुर्दांत कहानी मशहूर हो गई
रक्तरंजित गूंज रही कराहों से
यम- ड्योढ़ी तरबतर हो गई
लक्ष्मी दुर्गा पद्मिनी के देश में
माँ भारती शर्मसार हो गई
सरला मेहता