कविताअन्य
कब,कहाँ,क्या,क्यों,कैसे के सवालों में उलझ गई।
बेरोजगारी,भूखमरी,अशिक्षा जैसे मुद्दों से भटक गई।
जाने यह कैसी निष्पक्ष है मीडिया…।
चौबीस घंटे एक ही खबर भेड़चाल सी चल पड़ी।
खबर देना छोड़ जनता को खुद जासूस बन पड़ी।
जाने यह कैसी निष्पक्ष है मीडिया...।
डिबेट करवाने के नाम पर आपस में लड़वा रही।
सच का भ्रम फैला ये जनता से विश्वास चाह रही।
जाने यह कैसी निष्पक्ष है मीडिया...।
लोगों की भावनाओं-विश्वास से निरंतर खेल रही।
अपने चैलन की टीआरपी बढ़ने की होड़ मच रही।
जाने यह कैसी निष्पक्ष है मीडिया...।
चौथा स्तंभ कही जाने वाली निम्नस्तर पर आ गई।
चैनलों की एक से बढ़कर नई खेप बाजार में आ गई।
जाने यह कैसी निष्पक्ष है मीडिया...।
अपने को नंबर वन नंबर वन की रेस में बेलगाम दौड़ रही।
प्रतिस्पर्धा में एक दूसरे चैनलों पर ही कीचड़ उछाल रही।
जाने यह कैसी निष्पक्ष है मीडिया...।
धन्यवाद
राधा गुप्ता पटवारी 'वृन्दावनी'