कवितालयबद्ध कविता
हे भगवान,
हो सके तो
कुछ समय के लिए सही
अपनी इस सृष्टि को एक
क्रांतिकारी मोड़ दे
कुछ बरसों के लिए सही
बेटी बनाना छोड़ दे
तब देखना एक अजब तमाशा
हाँ, तभी लगेगा एक तमाचा
इस सडी़-गली सी बूढ़ी सोच पर
जो रखती है बेटी-बहू से
बस नाती-पोते की आशा
क्या होगा तब पोता
और क्या होगी पोती
क्या होगा दोहता तब
और क्या होगी दोहती
जब इन सबको नौ माह तक
अपने गर्भ में ढोने को
बेटी ही ना पैदा होगी
टूट चुका है,
इनका रिश्ता चेतना से,
ये टूटा धागा तू
फिर से जोड़ दे
कुछ बरसों के लिए सही
बेटी बनाना छोड़ दे
जब भटकेंगे ये
सारे बेटे कुँआरे
माँ-बाप फिरेंगे
गली-गली मारे-मारे
रखनी पडे़गी सारी
धन-दौलत सहेज
देने को इन चिरंजीवों का
भारीभरकम सा दहेज
क्या खूब होगा वो बेजोड़ सा नजारा
इस मातृशक्ति के चरणों में
जब होगा नतमस्तक जग सारा
पौरुष के इस खोखले से दंभ को
तू इस तरह जवाब एक मुँहतोड़ दे
कुछ बरसों के लिए सही
बेटी बनाना छोड़ दे
बना हर नारी को
तू अष्टभुजा,
चामुंडा,काली,दुर्गा
जो करे मदमर्दन
हर एक चंड-मुंड,
हर रक्तबीज,
हर महिषासुर का
या फिर बने हर नारी
झाँसी की रानी
या फिर शक्तिस्वरूपा इंदिरा
जो बदल दे बस इतिहास ही नहीं
भूगोल भी कुछ इस तरह
जो सावित्री बन
राह यम की मोड़ दे
अगर नहीं तो,
इस जग में
बेटी बनानी छोड़ दे
द्वारा : सुधीर अधीर