कविताअतुकांत कविता
विषय - चित्र आधारित
विधा - मुक्त
दिन - शुक्रवार
चित्र
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दाल-रोटी के जुगाड़
और ज़िंदगी की ज़द्दोज़हद
में बुरी तरह उलझे
कल्पना के
अनंत आकाश में विचरते
इंसान के इंद्रधनुषी सपने
अक्सर क्यों टूट जाते हैं
यथार्थ की पथरीली जमीन से टकराकर ?
सोच में पड़ जाता है वह
समझ ही नहीं पाता है
कि पत्थरों पर उकेरे गये शिल्प
ज़िंदगी के कैनवास पर बने
चित्रों से सुंदर क्यों होते हैं ?
- विजयानंद विजय