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माँ से जब भी मिला हूँ खुदको बिसरा हूँ - Anmol Bohra (Sahitya Arpan)

कवितागजल

माँ से जब भी मिला हूँ खुदको बिसरा हूँ

  • 136
  • 5 Min Read

माँ से जब भी मिला हूँ खुदको बिसरा हूँ
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तड़पे पानी को जो सदा मैं ऐसा सहरा हूँ
बिन तुम्हारे मरहला -ए-दर्द से गुज़रा हूँ

आँसुओं की शक्ल में लहू मैं बहा देता हूँ
जिंदा हूँ पर मर मैं रहा कतरा कतरा हूँ

मुझसे मेरा बोझ अब उठाया नहीं जाता
आतिश -ए-फ़ुर्क़त में हुआ मैं अधमरा हूँ

मेरी सच बयानी की आदत की वजह से
जमाने की नजरों को मैं हमेशा अखरा हूँ

तुम एकपल भी न रुके सदा मेरी सुनकर
मगर तुमने जब भी पुकारा है मैं ठहरा हूँ

बिन मेरे फ़िजूल है ये ग़ज़लगोई तुम्हारी
तुम्हारी हरएक ग़ज़ल का मैं ही मिसरा हूँ

अपनी कुशादा बाँहों में छिपा लेती है वो मुझको
माँ से जब भी मिला हूँ "अमोल"खुदकोबिसरा हूँ

स्वलिखित तथा पूर्णतया मौलिक
सी यस बोहरा
"अमोल"

उर्दू शब्दों के हिंदी अर्थ
सहरा:- जंगल, वन
मरहला-ए-दर्द :- दर्द का पड़ाव, ठिकाना
कतरा कतरा :- टुकड़ों में ,किश्तों में
आतिश -ए-फ़ुर्क़त:- जुदाई की आग
सदा:- आवाज
ग़ज़लगोई :- ग़ज़ल कहनेवाला ,अथवा लिखनेवाला
कुशादा बाँहों (बाँहे ) - खुली हुई बाँहों में
बिसरा:- भूलना

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Anujeet Iqbal

Anujeet Iqbal 4 years ago

वाह

Anmol Bohra4 years ago

आपकी बेलौस मोहब्बतों बेपनाह नवाज़िशों और नजरे इनायत का बेहद शुक्रगुज़ार हूँ आदरणीया Anujeet Iqbal जी

प्रपोजल
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