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डर.... - Champa Yadav (Sahitya Arpan)

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डर....

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डर...

जो कभी जीते थे गरीबी में। अक्सर ऊंचाई पर पहुंचते ही इंसानियत भूल जाते हैं वह भी ढल जाते हैं दोहरे किरदार में। जिनके जीने के रंग अलग और दिखाने के रंग अलग।

सिखाते हैं सबको इंसानियत का पाठ और अपनी इंसानियत भूल जाते हैं। करते हैं वादे लंबी-लंबी। निभाते हैं कुछ भी नहीं.....।

ऐ दुनियाँ है जालसाजो की। यहाँँ बहुत संभल कर चलना पड़ता है । यहाँँ सीधी चाल चलने वाला कोई नहीं।शतरंज की तरह टेढ़ी चाल चलना पड़ता है तभी आप उनसे मुकाबला कर सकते हो।

"यहाँ डर सिर्फ इंसान के दोहरे रूप से है...."

जो कब रूप बदलकर आपको चित कर देगा। और आप कुछ भी नहीं कर पाओगे।

@champa यादव
22/09/20

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Champa Yadav

Champa Yadav 3 years ago

शुक्रिया.. मैम...हाँ..ये बिषय से संम्बन्धित नहीं है....

नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 3 years ago

वैसे अपना डर लिखना था लेकिन यह भी बहुत सुंदर लिखा है ?

समीक्षा
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