लेखआलेख
डर...
जो कभी जीते थे गरीबी में। अक्सर ऊंचाई पर पहुंचते ही इंसानियत भूल जाते हैं वह भी ढल जाते हैं दोहरे किरदार में। जिनके जीने के रंग अलग और दिखाने के रंग अलग।
सिखाते हैं सबको इंसानियत का पाठ और अपनी इंसानियत भूल जाते हैं। करते हैं वादे लंबी-लंबी। निभाते हैं कुछ भी नहीं.....।
ऐ दुनियाँ है जालसाजो की। यहाँँ बहुत संभल कर चलना पड़ता है । यहाँँ सीधी चाल चलने वाला कोई नहीं।शतरंज की तरह टेढ़ी चाल चलना पड़ता है तभी आप उनसे मुकाबला कर सकते हो।
"यहाँ डर सिर्फ इंसान के दोहरे रूप से है...."
जो कब रूप बदलकर आपको चित कर देगा। और आप कुछ भी नहीं कर पाओगे।
@champa यादव
22/09/20