कहानीअन्य
मुझे डर लगता है.. बहुत डर लगता है.. मेरे खुद के ना होने से। डर लगता हैं मैं नही रही तो कौन करेगा मेरे बच्चों की हर फरमाइश पूरी.. कौन इनकी देखभाल करेगा हर वक़्त..कौन इनकी मनपसंद चीजें बनाएगा..कौन इनकी ज़िद पूरी करेगा। कौन इनकी शैतानियो पर पर्दा डालेगा..कौन इन्हें हर चीज़ प्यार से सिखाएगा..समझायेगा। हां मुझे डर लगता है मेरे ना होने का..किसे फोन करके बतायेगी मेरी मां के आज ये बनाया है, आज वो बनाया है.. किसे फोन करके कहेंगे मेरे पिता की" तेरी माँ सुनती नही मेरी..तू ही समझा.. तेरी ही बात मानेगी ..मैं तो थक गया कहते -कहते..किसे वीडियो कॉल करके पूछेगें..ये कैसा वो कैसा है। किसे फोन करके पड़ोस वाली आँटी या मेरे ससुराल वालों की बुराइयां करेंगी.. किसके आने के इंतजार में हज़ारों व्यजंन बनाने की सोचेगी। हाँ बहुत डर लगता हैं मुझे मेरे ना होने से कौन मेरे पति से बात- बात पर झगड़ा करके अपने को ही सही बताएगा..आपको कुछ नही आता ये कहके कौन उन्हें चिढ़ाएगा..मैं हूं जो साथ हूँ कोई और होती तो छोड़कर चली जाती कहकर उनको कौन अपनी होने का अहसास दिलाएगा..कौन उनके साथ बारिश के मौसम में चाय पकौड़े का आनंद लेगा..कौन उनके कहने से पहले हर बात समझ जाएगा..किसके लिए फूल, गजरा, जलेबी लेके आएंगे। हां मुझे डर लगता हैं मेरे ना होने से कि कौन मेरे घर को इतने प्यार से सजायेगा.. संवरेगा..कौन दीवाली में रंगोली बनाएगा..दिए जलाकर मेरे घर को जगमगायेगा..कौन रखेगा मेरे इस घर का ख्याल जिसे पाई-पाई जोड़कर, कई सपनो को तोड़ कर लिया था। हां मैं जानती हूँ सब हँसेंगे मेरे इस "डर" के बारे में जानकर, ये भी कहेंगे कि एक समय..एक दिन तो सबको जाना ही है। लेकिन क्या होगा तब जब वो एक दिन..एक समय ...समय से पहले आगया तो... हां बहुत डर लगता हैं मुझे ..मेरे ना होने का...
जी यह कविता है? या लेख है या कहानी है कुछ समझ ही नही आ रहा है। ? मुझे लगता है आपको अपनी इस रचना पर थोड़ा और कार्य करने की जरूरत है।
Na kavita h na lekh ye man k bhav h jo kahi na kahi sabke man me hote h