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अफ़सोस - Dipak Kumar (Sahitya Arpan)

कवितागजल

अफ़सोस

  • 21
  • 6 Min Read

रहता था बेचैन बहुत
कई रातो को मै न सोया था
तेरी शादी की उस रात को मै
छुप छुप के बहुत ही रोया था
रहता था बेचैन बहुत —-

रुँधा हुआ मै गले को लेके
हँसता मुस्काता फिरता था
आग लगा के खुद के घर को
उस रात मै सब कुछ खोया था
तेरी शादी की उस ———-

सूज गयी थी आंख मेरी
लाल लाल हो आयी थी
रुक – रुक के कुछ -कुछ पल में
मै बार -बार मुँह धोया था
तेरी शादी की उस ———-

पहले सोचा तेरी सादी का मै
रश्म निभाने क्यों आउ
फिर सोचा की की शायद ही
मै कभी दोबारा मिल पाउ
आंसू के शैलाब को उस तकिये से पूछो
जिस पर मै उस रात को सोया था
तेरी शादी की उस ———

किसी तरह वो रात कट गयी
दिन का उजाला फिर आया
जो हाथ मेरे पहले थे कभी
उसे किसी गैर को पकड़ाया
उस दर्द को मैंने बड़े प्यार से
हॅसते हॅसते ढोया था
तेरी शादी की उस ——–

आयी विदाई की बारी
मै भी पुष्पों को फेक रहा था
अपनी उजडती दुनिया का
मै खड़ा तमाशा देख रहा था
बाग़ में जाके पड़ा अकेले
फ़ूट फ़ूट कर रोया था
तेरी शादी की उस ——–

तेरे मधुर मिलन की बेला पे
सोचो क्या हाल हुआ होगा
जब खेल रही थी साजन संग
मेरे दिल का खून बहा होगा
चाह के भी मै क्या करता
नशे में बस मै खोया था
तेरी शादी की उस ——–

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