कविताअतुकांत कविता
उदासी
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अपनों से दूर हर तरह से मजबूर |
न कोई खोज खबर लेनेवाला
न कोई अपनी खबर देनेवाला
तब जो चेहरे पर घिर आती है
उसे ही शायद उदासी कहते हैं |
जब कोई अपना बिछड़ जाता है
एक सुनसान सी गली में
हमें छोड़ जाता है |
जब यादें ही सिर्फ रह जाती हैं
सताने के लिए
कोई राजी नहीं होता पास आने के लिए
हर तरफ असहमति के स्वर गूँजने लगते हैं
जब ढूँढ़ता रह जाता है मन उसे
जिससे अपने मन की बात कहे
और कोई नहीं मिलता सुननेवाला
तब जो चेहरे पर जो रेखाएं घिर आती हैं
शायद वहीं बतला जाता है
उदासी के चिह्न दिखला जाता है |
जब मिट जाती है आस
दुनियाँ से सराहना की
उत्साह दम तोड़ने लगता है
तब चेहरे पर जो भाव आता है |
शायद उसे उदासी कहते हैं |
जिस रोटी पर रात का साया पड़ गया हो
उसे ही वासी कहते हैं |
कृष्ण तवक्या सिंह
20.09.2020.