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हिंदी: विश्व की सर्वाधिक बोली जाने वाली अंतरराष्ट्रीय भाषा - Dr. Pawanesh Thakurathi (Sahitya Arpan)

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हिंदी: विश्व की सर्वाधिक बोली जाने वाली अंतरराष्ट्रीय भाषा

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हिंदी: विश्व की सर्वाधिक बोली जाने वाली अंतरराष्ट्रीय भाषा

- डॉ. पवनेश ठकुराठी

स्थानीय या क्षेत्रीय वस्तुओं या घटनाओं के विश्व स्तर पर रूपांतरण की प्रक्रिया ही वैश्वीकरण है। आज किसी भी देश के एक छोटे से हिस्से की खबर पल भर में पूरी दुनिया में फैल जाती है। यह वैश्वीकरण का ही प्रतिफल है। वैश्वीकरण की इसी विशेषता के कारण आज हमारी हिंदी पूरी दुनिया में फैल रही है। हमारा हिंदी साहित्य भी आदिकाल, भक्तिकाल, रीतिकाल में क्रमिक विकास करता हुआ अब आधुनिक काल में ग्लोबल साहित्य बन चुका है। अब देश में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी हिंदी भाषा को जानने-सुनने वाले लोग बहुतायत में मिलते हैं।

हिंदी भारत की राजभाषा होने के साथ-साथ राष्ट्रभाषा भी है और इस राष्ट्रभाषा की विशेषता रही है कि इसने अपना विकास स्वयं अपने बल-बूते पर तत्कालीन परिस्थितियोंके अनुरूप ढाल कर किया है। आज भी भारत में भारत के अधिकांश राज्यों में हिंदी बोली जाती है। भारत ही नहीं बल्कि विश्व के अनेक देशों में हिंदी बोली, समझी और सीखी जाती है। आज विश्व में अंग्रेजी को अंतरराष्ट्रीय भाषा के रूप में दर्शाया जाता है। यहाँ यह जानना आवश्यक होगा कि संयुक्त राष्ट्र संघ की छह आधिकारिक भाषाएँ हैं- 1. चीनी, 2. स्पेनिश, 3. अंग्रेजी, 4. अरबी 5. रूसी और 6. फ्रेंच।

एक भारतीय शोधकर्ता डा0 जयंतीप्रसाद नौटियाल ने अपनी वर्ष 2015 में पुनः प्रकाशित शोध रिपोर्ट में कई नवीन खुलासे किए हैं। उनकी यह रिपोर्ट राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय, भारत सरकार, नई दिल्ली की त्रैमासिक पत्रिका 'राजभाषा भारती' के जुलाई-सितंबर, 2015 अंक में पुन: प्रकाशित हो चुकी है। उनके अनुसार हिंदी विश्व में सबसे अधिक बोली व समझी जाने वाली भाषा है तथा यह विश्व की सर्वाधिक लोकप्रिय भाषा है। अब तक चीन की मंदारिन को विश्व की सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा के रूप में प्रचारित किया जाता रहा है। किंतु वर्ष 2015 में प्रकाशित डा0 नौटियाल की रिपोर्ट के अनुसार संपूर्ण विश्व में मंदारिन जानने वाले लोगों की संख्या सिर्फ 1100 मिलियन है, जबकि हिंदी बोलने वाले लोगों की संख्या 1300 मिलियन है।

वस्तुतः हिंदी पिछले कुछ वर्षों से लोकप्रियता के शिखर को छूती हुई दिखाई दे रही है। वर्ष 2014 में वैचारिकी में प्रकाशित अनिरूद्ध सिंह का लेख भी नौटियाल जी के पूर्व प्रकाशित शोध का हवाला देते हुए इसी तथ्य को उद्घाटित करता है: “डा0 जयंतीप्रसाद नौटियाल ने अपने वर्षों के सर्वेक्षण में चैंकाने वाले तथ्य एकत्र किये हैं। डा0 नौटियाल के अनुसार हिंदी जानने वालों की संख्या 1 अरब 10 करोड़ 30 लाख है, जबकि चीनी भाषा जानने वालों की सिर्फ 1 अरब 6 करोड़ है। इस तरह हिंदी भाषा विश्व में पहले स्थान पर है।’’

अतः प्रसार संख्या को ध्यान में रखा जाय, तो हिंदी विश्व की समस्त भाषाओं में आगे है और यह अंतराष्ट्रीय भाषा कहलाने की हकदार है। वस्तुतः प्रसार की दृष्टि से हिंदी विश्व की तमाम भाषाओं में आगे है। मारिशस, सूरीनाम, फिजी, गुयाना, त्रिनिडाड, टुबैगो, पाकिस्तान, भूटान, बांगलादेश, नेपाल आदि देशों के प्रवासी भारतीयों द्वारा हिंदी बोली और समझी जाती है, साथ ही विश्व के 90 से अधिक देशों में हिंदी के अध्ययन और अध्यापन की व्यवस्था है या फिर जीवन के विविध क्षेत्रों में उसका प्रयोग किया जाता है।

इनमें अमेरिका, कनाडा, मैक्सिको, क्यूबा, रूस, ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रंस, बेल्जियम, हालैण्ड, आस्ट्रेलिया, स्विटजरलैंड, डेनमार्क, नार्वे, स्वीडेन, फीनलैंड, पौलैंड, चैक, हंगरी, रोमानिया, बुल्गारिया, उक्रेन, क्रोशिया, दक्षिण अफ्रिका, पाकिस्तान, बंगलादेश, श्रीलंका, नेपाल, भूटान, म्यांमार, चीन, जापान, दक्षिण कोरिया, मंगोलिया, उज्बेकिस्तान, तजाकिस्तान, तुर्की, थाईलैंड, आस्ट्रेलिया, अफगानिस्तान, अर्जंटीना, अलजेरिया, इक्वेडोर, इंडोनेशिया, इराक, ईरान, युगांडा, ओमान, कजाकिस्तान, कतर, कुवैत, केन्या, क्रोंट डी, इबोइरे, ग्वाटेमाला, जमाइका, जांबिया, तंजानिया, नाइजीरिया, निकारागुआ, न्यूजीलैंड, पनामा, पुर्तगाल, पेरू, पैरागुवै, फिलिपिंस, बेहरीन, ब्राजील, मलेशिया, मिश्र, मेडागास्कर, मोजांबिक, मोरक्को, मौरिटानिया, यमन, लीबिया, लेबनान, वेनेजुएला, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, सिंगापुर, सूडान, सेशेल्स, स्पेन, हांगकांग, होंडूरास, आदि देश आते हैं।

अमेरिका में दो करोड़ से अधिक भारतीय मूल के लोग रह रहे हैं। वहां के हार्वर्ड, पेन, मिशीगन, येल आदि विश्वविद्यालयों में हिंदी का शिक्षण हो रहा है। अमेरिका के लगभग 75 विश्वविद्यालयों में हिंदी पढ़ाई जा रही है। हिंदी का अध्ययन करने वाले छात्रों की संख्या पन्द्रह सौ से अधिक है। अमेरिका में हिंदी के लिए कई संस्थाएँ कार्य कर रही हैं। जिनमें अतरराष्ट्रीय हिंदी समिति, विश्व हिंदी समिति, हिंदी न्यास आदि प्रमुख हैं।

इंग्लैंड के केम्ब्रिज, आक्सफोर्ड, लंदन, यार्क विश्वविद्यालयों में हिंदी की पढ़ाई काफी समय से होती आ रही है। इंग्लैंड, वेल्स और स्काटलैंड में 2004-05 के स्कूल सर्वे में बच्चों की भारी संख्या (180,764,711) ने अपने आप को हिंदी भाषी बताया था। मारिशस में हिंदी को सर्वाधिक गरिमा प्राप्त है। मारिशस विश्व का एकमात्र ऐसा देश है, जहाँ की संसद ने हिंदी के वैश्विक प्रचार के लिए और उसे संयुक्त राष्ट्र संघ की अधिकृत भाषा के रूप में प्रतिष्ठित कराने के लिए ‘विश्व हिंदी सचिवालय‘ की स्थापना की है। 12 लाख की आबादी वाले इस द्वीप में पाँच लाख हिंदी भाषी हैं। मारिशस में प्राथमिक पाठशाला से लेकर विश्वविद्यालय स्तर तक हिंदी पढ़ाई जाती है। रेडियो और टेलीविजन पर दिन-रात हिंदी में कार्यक्रम चलते रहते हैं।

दुनियाभर के 50 से अधिक देशों में हिंदी का प्रचार -प्रसार व्यापक रूप से होता दिखाई दे रहा है। इन देशों में हिंदी के साहित्यकार, रचनाकार, शिक्षक, संपादक, विभिन्न संस्थान आदि सभी हिंदी के विकास हेतु प्रयत्नशील हैं।

वैश्वीकरण के इस दौर में कंम्यूटर, टेलीविजन, हिंदी सिनेमा, दूरदर्शन, रेडियो के विभिन्न् चैनलों ने हिंदी के प्रचार-प्रसार में अपनी महवपूर्ण भूमिका निभाई है। यद्यपि टेलीविजन और फिल्मों की हिंदी में अंग्रेजी शब्दों की घुसपैठ दिखाई देती है, तथापि हिंदी निरंतर प्रगति की ओर अग्रसर है। हमारे दैनिक जीवन में भी अंग्रेजी के कई शब्द प्रयोग किए जाते हैं। किसी भाषा के कुछ शब्द अन्य भाषा में शामिल हो जाएँ, उससे भाषा को अधिक हानि नहीं होती। भाषा की समाहार शक्ति उस भाषा के प्रचार-प्रसार में सहायक होती है। यह हमारे लिए हर्ष का विषय है कि हिंदी आज विश्व में मनोरंजन के क्षेत्र में पहले स्थान पर है। हिंदी का ही प्रभाव है कि डिस्कवरी, जी टीवी, सोनी जैसे चैनल और उनके कार्टून कार्यक्रम भारत और उसके पड़ौसी देशों में हिंदी में प्रसारित होने लगे हैं।

वैश्वीकरण के युग में हिंदी भाषा की उन्नति के साथ-साथ हिंदी साहित्य भी उन्नति कर रहा है। आज भारत में ही नहीं वरन विदेशों में भी हिंदी के अनेक लेखक, कविता, कहानी, उपन्यास, निबन्ध, लेख, लघुकथा, गीत, नवगीत, नाटक, संस्मरण, रिपोर्ताज, साक्षात्कार, जीवनी, आत्मकथा आदि सभी विधाओं में लेखन कार्य कर रहे हैं।

अतः स्पष्ट है कि वैश्वीकरण के परिणामस्वरूप हिंदी भाषा का तेजी से विकास हो रहा है। अब हिंदी विश्व की सर्वाधिक बोली जाने वाली और लोकप्रिय अंतरराष्ट्रीय भाषा बन चुकी है। डा0 नौटियाल के अनुसार, विश्व में हिंदी जानने वाले लोगों की कुल संख्या 1300 मिलियन है। इस प्रकार डा0 जयंतीप्रसाद नौटियाल के शोध से स्पष्ट हो चुका है कि हिंदी विश्व की प्रथम और लोकप्रिय भाषा तो है ही साथ ही एक अन्तरराष्ट्रीय भाषा भी है। आज दुनिया भर में हिंदी बोलने व जानने वाले लोगों की संख्या में तेजी से वृद्धि हो रही है।

यह विडंबना ही है कि इतने वैश्विक प्रसार के बावजूद व भारतीय संविधान द्वारा राजभाषा का दर्जा दिये जाने के बावजूद हिंदी भारत में अब तक राजकाज की भाषा नहीं बन पाई है। सिविल सेवा परीक्षाओं में भी हिंदी माध्यम से उत्तीर्ण अभ्यर्थियों का चयन प्रतिशत बहुत ही कम है। इसके अलावा हिंदी को विज्ञान और तकनीकी की भाषा बनाने पर भी जोर दिए जाने की जरूरत है। अतः सरकार को चाहिए कि वह हिंदी के विकास हेतु प्रयत्नशील रहे।

आइये हिंदी दिवस के अवसर पर हम सभी राष्ट्रभाषा हिंदी हेतु आजीवन समर्पित होने का संकल्प लें और हिंदी के विकास हेतु सदैव तत्पर रहें। इसी में हम सबकी उन्नति है।

संदर्भ-
1. वैचारिकी, सितंबर-अक्टूबर, 2014, भाग-30, अंक-5
2. ज्ञान-विज्ञान बुलेटिन, मार्च, 2015, वर्ष-11, अंक-3
3. राजभाषा भारती, जुलाई-सितंबर, 2015

- डॉ. पवनेश ठकुराठी, अल्मोड़ा, उत्तराखंड।
वेबसाइट- www.drpawanesh.com

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Gita Parihar

Gita Parihar 3 years ago

वृहद जानकारी देता हुआ आलेख,बहुत बढ़िया!

Champa Yadav

Champa Yadav 3 years ago

प्रशंसनीय.... लेख....सर

समीक्षा
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