कवितागजल
दिन का सुकून,नींद रातों का,गुजार रखा है
कई ख्वाब हमने पलकों पे उधार रखा है
जरा सलीके से पढ़ना तुम खत का हरेक हर्फ
हमने खत में अपने दिल को उतार रखा है
सुना है कि तुम्हें इल्म चारा-गरी का आता है
सो तुम्हारे वास्ते ही खुद को बीमार रखा है
तुम्हें खाहिश थी कभी सितारों से बात करने की
तुम्हारे आंगन में कई जुगनू उतार रखा है
जब आओगे मिलने तो शर्तिया शोर न होगा
हमने कमरे से दरवाजा जो उतार रखा है
~ इंदर भोले नाथ
बागी बलिया उत्तर प्रदेश
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