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ज़िन्दगी - Gaurav Shukla (Sahitya Arpan)

कवितालयबद्ध कविता

ज़िन्दगी

  • 177
  • 3 Min Read

पन्नें सिमट रहे है दर परत दर ज़िन्दगी के,
यहाँ मौत का इंतज़ार किसको है,
मालूम है जाना है ज़िन्दगी को,
पर बेशुमार इस ज़िन्दगी से प्यार यहां सबको है,
और बिछड़े जो खुशियाँ हम खरीद लाएंगे-२
जहाँ चाहत दौलत की बेशुमार यहाँ सबको है...
डायरी के पन्नों की ललक सब ग़ौर कर लेती हैं ऐ ज़िन्दगी,
पढ़ कर तुझे लगा ,
शिक़ायत से लगाव यहां सबको है,
इस जिंदगी के खुदरे पन्नों को हमनें ख़ून की स्याही से रंग डाला,
अपनी मेहनत कहाँ,
बस कई सवाल यहां सबको है।
उलझनों के माँझे में ज़िन्दगी की डोर सबने सौंप दी,
उड़ती ज़िन्दगी को काटने की चाह यहाँ सबको है।


-गौरव शुक्ला'अतुल'

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Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 4 years ago

सुन्दर रचना..!

Gaurav Shukla4 years ago

शुक्रिया

प्रपोजल
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माँ
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