कवितालयबद्ध कविता
पन्नें सिमट रहे है दर परत दर ज़िन्दगी के,
यहाँ मौत का इंतज़ार किसको है,
मालूम है जाना है ज़िन्दगी को,
पर बेशुमार इस ज़िन्दगी से प्यार यहां सबको है,
और बिछड़े जो खुशियाँ हम खरीद लाएंगे-२
जहाँ चाहत दौलत की बेशुमार यहाँ सबको है...
डायरी के पन्नों की ललक सब ग़ौर कर लेती हैं ऐ ज़िन्दगी,
पढ़ कर तुझे लगा ,
शिक़ायत से लगाव यहां सबको है,
इस जिंदगी के खुदरे पन्नों को हमनें ख़ून की स्याही से रंग डाला,
अपनी मेहनत कहाँ,
बस कई सवाल यहां सबको है।
उलझनों के माँझे में ज़िन्दगी की डोर सबने सौंप दी,
उड़ती ज़िन्दगी को काटने की चाह यहाँ सबको है।
-गौरव शुक्ला'अतुल'