कवितालयबद्ध कविता
दिल के सांचे में अश्क ढलता हैं।
जब दिल मे दर्द कोई उठता हैं,
दिल में जो दर्द है उसे कहने को डरता हैं,
कौन है यहाँ जो मेरे दर्द को समझे।
दिल के सांचे में अश्क ढलता हैं।
मन में सवाल बहुत उठते हैं,
बातें करने को दिल करता हैं,
कौन सुनेगा मेरी बाते।
ये सोचकर दिल के सांचे में अश्क ढलता हैं।
दीपक तो हजारों हैं यहाँ 'बाती' बनाने को कोई नही,अंधेरा है चारो तरफ मेरी राहों में। उजाला कैसे होगा ये सोचकर
दिल के सांचो में अश्क ढलता हैं।
जिन्हें समझा मेने अपना,
अपने ही मेरे दुश्मन होंगे,
उनका बदलता रुख,
मेरे दिल को तबाह करता हैं।
दिल के सांचे में अश्क ढलता हैं।
ममता गुप्ता
राजगढ़ अलवर